कविता

“दिग्पाल छंद”

मापनी- 2212 122, 2122 122

जब गीत मीत गाए, मन काग बोल भाए

विरहन बनी हूँ सखियाँ, जीय मोर डोल जाए

साजन कहाँ छुपे हो, ले राग रंग अबिरा

ऋतुराज बौर महके, मधुमास घोल जाए।।

आओ न सजन मेरे, कोयल कसक रही है

पीत सरसो फुलाए, फलियाँ लटक रहीं है

दादुर दरश दिखाए, मनमोहना कहाँ हो

पपिहा तरस रहा है, महुवा मलक रही है।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ