कविता

हवा में उड़ने वालो-

आसमान में उड़ने वालो
आसमान में ठिकाना नहीं होता
आसमान में आशियाना नहीं होता
आसमान होता ही कहाँ है ??
यह तो केवल नज़र की इंतहा है ,
जितनी दूर नज़र जाती है –
आसमान वहीँ नज़र आता है
जितना भी तू ऊपर जायेगा
आसमान उतना ही दूर हो जायेगा
हवा में उड़ने वालो-
जुड़ना ही है तो इस धरती माँ से जुडो
जो सबको ठिकाना देती है ‘
सबको आशियाना देती है,
तरुवर वह ही सबसे बड़ा है
जो जड़ से रसातल से गहरा जुड़ा है, ,
क्या अब यह भी समझाना पड़ेगा –कि
चाहे आसमान में जितना ऊंचा उड़ लो –
दाना चुगने के लिए-तो तुम्हें
इस धरा पर आना ही पड़ेगा,

–जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845