कविता

सच कहता हूं

घर से
‘कुछ नहीं’ पीकर आने की कसम
खाकर जाने वाले
प्रेमपूर्वक 
‘कुछ नहीं’ पीकर
घर आते हैं
और 
घर जाकर
पत्नी की कसम खाकर
कहते हैं
”सच कहता हूं”
आज फिर ‘कुछ नहीं’ पी.”
इस प्रकार
‘कुछ नहीं’ के चक्कर में
बहुत कुछ पी जाते हैं
और 
अपने
तन-मन-धन
स्वास्थ्य और संस्कृति के साथ
खिलवाड़ करते हैं
जमकर सच कहने की
कसम खाकर झूठ के साथ
जमकर दोस्ती निभाते हैं.

पुनश्च-
(‘कुछ नहीं’ स्कॉच व्हिस्की का नाम है)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “सच कहता हूं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कुछ नहीं पीते पीते बहुत कुछ पी लेते हैं कुछ लोग . लघु कथा अछि लगी .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता बहुत अच्छी लगी. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. कुछ लोग कुछ नहीं पीते पीते बहुत कुछ पी लेते हैं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    सच कहता हूं बोलकर झूठ के साथ दोस्ती निभाने वाले पति मद्यपान से होनेवाली हानियों से वाकिफ होते हुए भी अपनी शराब की लत को छोड़ नहीं पाते हैं, इस प्रकार अपना, अपने परिवार, समाज और देश का भी सर्वनाश कर देते हैं. इसी को इंगित करती हुई प्रस्तुत है यह व्यंग्यमय कविता.

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