बाल कविताशिशुगीत

मेरा खिलौना

मुझको कहते बाल सलोना,
मैं अपनी ममी का खिलौना,
मुझको भातीं चीजें कितनी,
सबसे प्यारा मेरा खिलौना.

सबसे पहले मुझको भाया,
झन-झन झुंझने वाला खिलौना,
फिर फिरकी-लट्टू-गुब्बारे,
बैट-बॉल था मेरा खिलौना.

टमटम गाड़ी-कार-प्रैम का,
भेंट में पाया मैंने खिलौना,
अच्छा लगता कोई सराहे,
ले नहीं पाए मेरा खिलौना.

लुडो-शतरंज-सांप सीढ़ी का,
भाता था फिर मुझे खिलौना,
कैरम-टेनिस-बैडमिंटन को,
सब कहते हैं अच्छा खिलौना.

रेडियो-वीडियो-टेपरिकॉर्डर,
कम्प्यूटर-सा भाए खिलौना,
हाथी-घोड़ा-ऊंट सवारी,
मेले में बन जाए खिलौना.

गुल्ली डंडा-डंके-कंचे,
बन जाते हैं मेरा खिलौना,
कलर बॉक्स से चित्र बनाता
और बनाता कोई खिलौना.

दो या तीन पहियों की साइकिल,
समय बचाने वाला खिलौना,
संयम-नियम से नहीं चले तो,
जीवन ही हो जाता खिलौना.

क्या बतलाऊं क्या-क्या मुझको,
समझाता है मेरा खिलौना,
हंसना-खेलना-गिर के संभलना,
सिखलाता है मेरा खिलौना.

कभी रूठ भी जाऊं मैं तो,
मुझे मनाए मेरा खिलौना,
वह मेरा मैं उसका प्यारा,
मेरा खिलौना, मेरा खिलौना.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मेरा खिलौना

  • लीला तिवानी

    बच्चों की निराली दुनिया में उनके खिलौने ही उनके लिए सब कुछ हैं. उनके खिलौने समय-समय पर बदलते रहते हैं, लेकिन उनके खिलौनों को कोई और हाथ लगा ले, यह उनको गवारा नहीं होता. वे अपनी मर्जी से चाहे जिसे दे दें और फिर मन-मुटाव होने पर वापिस भी ले लेते हैं. दोस्ती होने पर फिर से उसे दे भी देते हैं. ऐसी होती है बच्चों के खिलौनों की निराली दुनिया.

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