गीत/नवगीत

गर्व

मत गर्व करो निज यौवन पर,
यह यौवन ढलती छाया है,
है चार दिनों की चांदनी यह,
फिर काली रात की माया है.

मत गर्व करो धन-दौलत पर,
यह केवल मैल है हाथों का,
कर सकते इससे काम भले,
दो साथ गरीबों-अनातों का.

मत गर्व करो सुंदरता का,
यह नश्वर है क्षणभंगुर है,
मन सुंदर तो सब सुंदर,
वरना हर चीज असुंदर है.

मत गर्व करो संतानों पर,
किसने भविष्य को देखा है,
होना है जो होकर ही रहे,
सब मनुज-भाग्य की रेखा है.

सिर नीचा उसका होता है,
जो सीना तान घमंड करे,
रावण-दुर्योधन-कंसादिक को,
पापी कह दुनिया याद करे.

कार्य बड़े करके जो जग में,
भूले से भी गर्व न करते,
गांधी-गौतम-टैगोर-तिलक सम,
मरकर सदा अमर वे रहते.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “गर्व

  • लीला तिवानी

    लगेगी एक दिन, उनके ग़ुरूर को ठोकर,
    ज़मीन पर जो, कदम देखकर नहीं रखते हैं.
    तूफान के बाद वही पेड़ खड़े रह पाते हैं,
    जो झुकने का हुनर रखते हैं.

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