चलते चलते…
भाव चुराते ताव चुराते
साहित्य समुंदर पार करन को
वो शब्दों की नाव चुराते
हाथ- सफाई ऐसी करते
अच्छे-अच्छे गच्चा खाते
सूरज-चंदा छिपे ओट में
बादल अपना रोब जमाते
कहीं से शब्द कहीं से पंक्ति
भानुमता यूं कविता बनाते
मंचों पर छाजाते जैसे
आसमान पर बादल छाते
चोर-चोर मौसेरे भाई
अलग अपनी बिसात जमाते
‘व्यग्र’ आज भी व्यग्र है देखो
अच्छे दिन उसके ना आते
— व्यग्र पाण्डे