कविता

चलते चलते…

भाव चुराते ताव चुराते
साहित्य समुंदर  पार करन को
वो शब्दों की नाव चुराते

हाथ- सफाई  ऐसी करते
अच्छे-अच्छे गच्चा खाते
सूरज-चंदा छिपे ओट में
बादल अपना रोब जमाते
कहीं से शब्द कहीं से पंक्ति
भानुमता यूं कविता बनाते
मंचों पर छाजाते जैसे
आसमान पर बादल छाते
चोर-चोर मौसेरे भाई
अलग अपनी बिसात जमाते
‘व्यग्र’ आज भी व्यग्र है देखो
अच्छे दिन उसके ना आते

— व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201