बढ़ती धड़कनें
बेटी के मेले जाने की जिद
और बढ़ गयी बुधिया की धड़कनें
जैसे स्वीकृति नहीं क्या माँग लिया हो
कोई कीमती चीज
या फिर इतने रुपये कि
वो असमर्थ हो देने में।
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं माँगा
बिटिया नें तो
सहेलियों के साथ मेला जाने की आज्ञा माँगी
जो आज मुश्किल है
कठिन है दे देना
किसी भी कीमती चीज से।
बुधिया आज के दौर से वाकिफ था
दोस्तों में सुना था ऐसी चर्चा करते हुए
दरिंदगी और हत्याओं की दिल दहला देने वाली खबरों
और हमारे कानून के लचर व्यवस्था से।
तो क्या करे अगर
नहीं देती इजाजत उसकी आत्मा
पसीज जाता है वो
पेशानी पर खिच जाती हैं रेखाएँ
चिंता की
अनहोनी की
तो क्या करे अगर बढ़ने लगती हैं धड़कनें।
नहीं इजाजत दे पाता उसके अंदर का पिता
अनहोनी की आशंका
समाज का घिनौना रुप
डरा देता है उसे
शिकन बढा़ देता है चेहरे की
और नहीं जा पाती गुड़िया मेला घूमने।