कविता

कविता – रोशनी कब कहाँ किधर से आएगी।

रोशनी कब कहाँ किधर से आएगी।

जलेगी जब मेरी खोली ये तभी नजर आएगी।।

अंधेरो में चलना भी अंधेरा ही हमे बताएगा।
आँखों पर बांध कर पट्टी अंधेरो में चलना ना आएगा।।

चलेगा जब आग के दरिया पर तभी जीना आएगा।
चमचागिरी की आड़ में कब तक चलता जाएगा।।

दुःखो की आग को खुद ही बुझाना होगा ।
लगी है जो आग तो बुझाने के लिए हाथ अपना ही जलाना होगा।।

भूख जो लगी है तुझे अपने दुःखो को खाने की।
तो दर्द की रोटियां भी तुझे चबानी होगी।।

कोई कुआ ना आएगा तेरी प्यास बुझाने के लिए।
तुझे खुद दरिया को अपने पास खीच के लाना होगा।।

अपने मुस्कुराने की कीमत तुझे खुद ही अदा करनी होगी।
खुद को हंसाने के लिए,जोकर का चेहरा लगाकर खुद ही आईने में देखना होगा।।

वो जो सामने से तुझे झूठे सपने दिखायेगा।
पास खोटे सिक्के है उसके,उससे तू कुछ भी ना कर पायेगा।

अपने जीवन रूपी पौधे के लिए वर्षा का पानी खुद ना आएगा।
अपने हुनर से तुझे खुद ही बादल को हिलाना होगा।।

शुखा जो पड़ा है एक लंबे अरसे से तेरे जीवन मे।
अपनी मेहनत से जीवन रूपी खेत को लहलहाना होगा।।

नीरज त्यागी

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- neerajtya@yahoo.in एवं neerajtyagi262@gmail.com ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)