लघुकथा

आ जाओ एक बार

“कहाँ हो रोहित, क्यों मुझे अकेलापन का दंश दे गये। तलाक के कागज पर ठप्पे लगने मात्र से ही क्या हमारे दिल के रास्ते अलग हो गये। क्यों तुमने अपनी जिंदगी से मुझे बाहर निकाल फेंका? शादी की रस्मे और कसमे साथ खाई थी फिर क्यो मुझे  जीवन की पथरीली राह में छोड़ अपनी जिंदगी में आगे बढ गये तुम। क्या  गुनाह था मेरा या हमारी बिटिया का जो तुमने राह अलग कर ली?”
सोचते सोचते सुनयना अपने अतीत में पहुंच गयी, हिन्दी माध्यम से पढी लिखी सुनयना का विवाह विदेश में बसे रोहित से बडे धूमधाम के साथ हुआ। सुन्दर सजीला दूल्हा पाकर वह अत्यधिक खुश थी। लोग भी उसके किस्मत से रश्क करते “कितना खुबसूरत वर पाया है साँवली सी लड़की ने”। विवाह के कुछ दिन एक दूसरे में खोये प्यार के एहसास में कब बीत गये, सुनयना को पता ही नहीं चला।
रोहित को याद आने लगी “ऐनी लिव इन रिलेशनशिप पार्टनर, जिसे अमरीका में छोड माँ बाप की इच्छा पूरी करने अपने देश आना पड़ा था, विवाह संस्कार में बंध तो गया था रोहित लेकिन  दिल से अभी भी ऐनी से बंधा महसूस करता। पत्नी का अंग्रेजी ना बोल पाना, साँवला रंग अखरने लगा था उसे। वैसे भी, जब किसी का त्याग करना हो तो उनमें ऐब ही ऐब नजर आते हैं। सुनयना की कोख में अपना अंश देकर उसे आजाद कर दिया जन्म जन्मानतर के रिश्ते से।
 भारतीय संस्कारों से बंधी सुनयना ने इसे अपनी नियति मान संघर्ष करते हुये बिटिया रानी को  शिक्षित करने में  कोई कसर नहीं छोडी।
आज बेटी नित्या ऊँचे पद पहुंच गिटिर पिटिर अंग्रेजी बोल रोहित की याद दिला जाती । उसके विवाह में ना चाहते हुए भी बार बार रोहित का चेहरा सामने आ जाता, जितना भूलने की कोशिश करती उतना ही पुरानी बातें आँखो के सामने आ जाता।
“काश रोहित, इस बार आ जाते तो देखते गंवार सुनयना ने अपने दम पर तुम्हारे अंश को शिक्षित कर एक मुकाम दिलवाया है।सुनती हूँ ऐनी ने तुम्हे छोड़ दिया है, किसी अंग्रेज के साथ रहती है वो। मैं आज भी बेटी के लिये तुम्हारे लौट आने का बेसब्री  से इंतजार कर रही हूँ। आ जाओ  रोहित इस बार तो आ जाओ,कम से कम पिता  का फर्ज तो अदा कर जाओ।पत्नी का अधिकार  छीन लिये, पिता का धर्म  तो निभा जाओ। बिटिया का कन्या दान कैसे होगा रोहित?”
“माँ  मैने परिवार और पंडित को कह दिया है मेरा कन्या दान सिर्फ आप करेंगी। समाज को दिखाने के लिये मुझे ऐसे व्यक्ति की जरुरत नहीं है जिन्होंने कभी पलट कर हमारा नहीं  सोचा।”
नित्या की प्यारी और आत्मविश्वास से भरी आवाज सुनकर सुनयना तंद्रा से जागी।
  “हाँ रोहित हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है अब और इन्तजार नहीं।”
   चल पडी सुनयना  एक और फर्ज  पूरी  करने।
किरण बरनवाल

किरण बरनवाल

मैं जमशेदपुर में रहती हूँ और बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय से स्नातक किया।एक सफल गृहणी के साथ लेखन में रुचि है।युवावस्था से ही हिन्दी साहित्य के प्रति विशेष झुकाव रहा।