मुक्तक/दोहा

” मुक्तक”

छन्द- वाचिक विमोहा (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी – 212 212

दृश्य में सार है

आप बीमार हैं

पूछता कौन क्या

कान बेकार है॥-1

आँख बोले नहीं

मौन देखे नहीं

पाँव जाए कहाँ

सार सूझे नहीं॥-2

वेदना साथ है.

आयना सार है।

दाग दागी नहीं-

देखती आँख है॥-3

देख ये बाढ़ है।

चेत आषाढ़ है।

सार डूबे धरा-

तैरना गाढ़ है॥-4

रोक पाते नहीं।

सार जाते नहीं।

मोह माया मिली-

क्रोध भाते नहीं॥-5

नूर नैना भले।

दूर नौका चले।

घाट घावों भरा-

सार छाया पले॥-6

कौन आया गया।

क्या मिला क्या गया।

सार साया लिए-

डोल हौवा गया॥-7

छोड़ जाना नहीं।

सार दाना नहीं।

भूख ज़ोरों लगी-

पेट माना नहीं॥-8

दर्द ऐंठा रहा।

सर्द पैठा रहा।

चींख आती रही-

मर्द बैठा रहा॥-9

खेल खेला नहीं।

गाँव मेला नहीं.

लोग जाते कहाँ-

सार रेला नहीं॥-10

मोल होता नहीं।

प्यार तोता नहीं।

याद जाती कहाँ-

सार सोता नहीं॥-11

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ