सामाजिक

लेख– बच्चों को नशे से दूर करने के लिए सरकार और समाज को आगे आना होगा!

बच्चें लोकतंत्र में होने वाले चुनावी स्वांग का हिस्सा नहीं होते। शायद उन्हें इसलिए दरकिनार कर दिया जाता है। वरना बच्चें ही आने वाले भविष्य में देश के कर्णधार हैं। तो उनका ख़्याल न रखा जाता। शायद आज के दौर की राजनीति में सुनहरे भविष्य को कौन देखना चाहता है। सभी को वर्तमान और अभी की पड़ी है। तभी तो देश में बच्चों की कोई अहमियत नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी कीमत तो 18 बसंत पार करने के बाद ही राजनीति समझ सकती है। इतने तक पहुँचते-पहुँचते अगर वह व्यसन का आदि हो गया। तो इससे तो सियासतदानों को ओर फ़ायदा ही है। शायद इसलिए भी बच्चों को मादक पदार्थों की चपेट से बचाने का कोई सार्थक क़दम नहीं उठाया जाता। लोकतंत्र में फ़िक्र सिर्फ़ मत की शेष रह गई है। यह बिना किसी भय और दवाब के साथ कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि देश का सुनहरा भविष्य और आज का बच्चा किस समस्या से दो-चार नहीं हो रहा। कुपोषण की समस्या से पीड़ित है। ग़रीबी का दानव उसे सड़क किनारे कचरें बीनने और होटलों पर काम करने पर विवश कर रहा है। इतना ही नहीं अगर नशे की चपेट में सबसे ज़्यादा कोई है। तो वह देश की युवा नई पीढ़ी है। तो क्या शायद यहीं आधुनिक होते भारत के बच्चों का जीवन है।

देश में बच्चों के विकास से संबंधित अनेक पक्षों पर समय-समय पर नीतियां घोषित की जाती हैं। इसके बावजूद समाज और सरकारों की ओर से समय के साथ बच्चों की बदलती आदतों पर गौर करते हुए उनका उचित हल तलाशने की कोशिशों में कमी दिखती है। ऐसे में सवाल यहीं उठता है। हम देश का कैसा भविष्य देखना चाहते हैं? जब जो आज बच्चा है, वह कुपोषण से पीड़ित और व्यसन में शुरुआत से ही उलझा रहेगा। फ़िर वह ख़ाक भविष्य में देश की उन्नति में भागीदार बन पाएगा। यह हमारा समाज और रहनुमाई व्यवस्था क्यों नहीं देख पा रहीं हैं। आज के दौर में बच्चों की प्रवृत्ति तेजी से बदलाव महसूस कर रहीं है। जिसमें से एक आदत बच्चों का मादक पदार्थों की तरफ़ तेज़ी से बढ़ता रुझान है। जो देश के सामने गम्भीर समस्या का रूप धारण करती दिख रहीं है। कायदे से इसकी गंभीरता के मद्देनजर सरकार और समाज को खुद ही कोई ठोस पहल करनी चाहिए था, लेकिन विडंबना है कि इससे निपटने के लिए बार-बार अदालतों को सरकार से पूछना पड़ रहा, कि वे बच्चों में बढ़ती नशे की लत पर काबू पाने के लिए क्या कर रहीं हैं।

अभी बीते दिनों एक गैरसरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई के बाद अपने ताजा आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि बच्चों में नशे की बढ़ती लत पर काबू पाने के लिए उसने क्या कदम उठाए हैं। यहां पर इस तथ्य को उजागर करना लाज़मी बनता है, कि दिसंबर, 2016 में उच्चतम न्यायालय ने बच्चों को नशे से बचाने के संदर्भ में कई दिशा-निर्देश जारी किए थे और केंद्र सरकार से कहा था कि स्कूली बच्चों के बीच नशे की लत को रोकने के लिए वह छह महीने के भीतर राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाए। मगर आलम तो यह है, कि सरकारें तब से अब तक बच्चों को नशे की लत से बचाने की दिशा में अढाई कोस भी चलती हुई नहीं दिख रही। अगर देश में नशे की चपेट में घूम रहें बच्चों के आँकड़े देखें, तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2005-06 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में पंद्रह से अठारह वर्ष की उम्र के लगभग साढ़े बारह करोड़ में से चार करोड़ से ज्यादा बच्चे तंबाकू, शराब या किसी अन्य मादक पदार्थ की आदत के शिकार हैं। इनमें लड़कों की तादाद 28.6 फीसद है, जबकि पांच फीसद लड़कियां भी किसी न किसी नशे की शिकार हैं। इसके इतर 2009 में संयुक्त राष्ट्र के नारकोटिक्स नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक दस-ग्यारह साल के करीब सैंतीस फीसद स्कूली बच्चे नशाखोरी की आदत के शिकार हो जाते हैं। तो इसे किस नज़रिए से देखा जाएं। क्या स्कूल प्रशासन और परिवार की जिम्मेदारी नहीं बनती की वे अपने बच्चों को बुरी लतों से बचाने का प्रयास करें। आख़िर बच्चें किस कारण से नशे की चपेट में आ जाते हैं। यह परिवार और समाज से बेहतर कौन समझ सकता है। ऐसी कौन सी परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है, कि जो उम्र खेलने-कूदने की होती है। सामाजिकता की पाठ सीखने की होती है। उस उम्र में आज की नई पीढ़ी नशे की लत में डूब रही है।

कहते हैं न, फ़सल जब ही अच्छी होती है। जब उसकी बीज अच्छी हो, और उसे बेहतरीन तरीक़े से खाद-पानी मिलें। तो यहीं बात समाज और सामाजिक व्यवस्था पर भी लागू होती है। कोई देश और समाज भविष्य में उन्नति तभी करेगा। जब उसकी भावी पीढ़ी स्वस्थ, सबल और बुरी आदतों से मुक्त होगी। पर दुर्भाग्य है, हमारे देश की युवा पीढ़ी नशे की तरफ़ ऐसे बढ़ रहीं। जैसे कुंए में ही भांग पड़ी हो। जिससे युवा समाज को बचाने की कोशिश फ़िर वह सरकारी हो, या सामाजिक स्तर पर। वह भी नदारद ही दिखती है। उदासीनता का ऐसा बादल छाया है, कि हमारा युवा वर्ग किस तरफ़ कूच कर रहा। शायद इसकी फ़िक्र न ख़ुद युवा समाज को है, न ही देश की रहनुमाई व्यवस्था और समाज के अन्य लोगों को। यहां यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी भी तरह के मादक पदार्थों की लत हमारे बच्चों और युवाओं की सेहत के साथ-साथ समूचे व्यक्तित्व को काफी क्षति पहुंचा रही है। इससे उनका भविष्य भी बुरी तरह प्रभावित होता है और इसका सीधा असर उनके परिवार और समाज पर पड़ता है। यह अलग से बताने की जरूरत शायद नहीं है कि इससे समाज और देश की कैसी तस्वीर बनेगी। देश के भीतर अपराध का ग्राफ़ अगर बढ़ रहा, तो इसके लिए जिम्मेदार देश में युवा वर्ग के मध्य बढ़ती नशे की लत भी है। तो ऐसे में अगर हम एक सशक्त और मजबूत राष्ट्र की कल्पना कर रहें हैं। तो हमें हमारी युवा पीढ़ी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की चिंता करनी होगी। इसके अलावा सरकारी स्तर पर वर्तमान दौर में पूरे देश में एक सर्वे कराना होगा। जिससे कितनी फीसद नई पीढ़ी नशे की गिरफ्त में है। उसका आंकलन किया जा सकें। उसके बाद उन्हें इस लत से दूर करने का सुनियोजित प्रयास हो। इसके अलावा समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए, वे नशे के सौदागरों को क़ानून के हवाले करें, और समाज के बच्चों को सीख दें, कि नशा सिर्फ़ जीवन का नाश ही करता है।

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896