धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हे मनुष्य जुआ मत खेल! खेती कर!

समाचार पत्र से मालूम हुआ सरकार क्रिकेट जैसे खेलों में सट्टेबाजी को रोकने में नाकाम होने पर सट्टेबाजी को क़ानूनी रूप से मान्यता देने की सोच रही हैं। पढ़कर मन में एक ही विचार आया। ऐसा आत्मघाती निर्णय सरकार को नहीं लेना चाहिए। इतिहास साक्षी है कि महाभारत का युद्ध पांडवों और कौरवों के मध्य भी इसी जुए की लत के कारण हुआ था। जिससे देश को अत्यंत हानि हुई थी। ईश्वरीय वाणी वेदों में जुआ खेलने को स्पष्ट रूप से निषेध किया गया है।
ऋग्वेद के 10 मंडल के 34 वें सूक्त को “कितव” सूक्त के नाम से जाना जाता हैं। इस सूक्त में कर्मण्य जीवन का उपदेश दिया गया है। वेद इस सूक्त के माध्यम से मनुष्य को आंतरिक दुर्बलताओं और अधोगामी सामाजिक प्रवृतियों से लड़ने का उपदेश भी देते हैं। कितव का अर्थ होता है जुआरी। इस सूक्त के प्रथम 14 मन्त्रों में वेद एक जुआरी की व्यक्तिगत हीन, दयनीय पारिवारिक दशा का, उसकी पराजय मनोवृति का बड़ा ही प्रेरणादायक चित्रण किया हैं। प्रथम मंत्र में जुआरी कहता है कि चौसर के फलक पर बार बार नाचते हुए ये जुएं के पासे मेरे मन को मादकता से भर देते है। जिसके कारण बार बार इच्छा होते हुए भी मैं यह व्यसन छोड़ नहीं पाता। पासों के शोर को सुनकर स्वयं को रोक पाना मेरे लिए कठिन है। मंत्र 2 में आया है कि एक जुआरी सब कुछ छोड़ सकता है। यहाँ तक की अपनी सेवा करने वाली गुणवान और प्रिय पत्नी तक को छोड़ देता है। मगर यह जुआ उससे नहीं छूटता। जब जुएं का नशा उतरता है। तब अपनी पत्नी के परित्याग का उसे पश्चाताप होता है। जुआ खेलने के कारण परिवार में उसका कोई सम्मान नहीं करता। उसकी हेय दशा इसी जुएं के कारण हुई है। तीसरे मन्त्र में एक जुआरी अपने किये पर पश्चाताप करता हुआ सोचता है कि उसकी सास उसकी निंदा करती है। पत्नी घर में घुसने नहीं देती। आवश्यकता होने पर भी कोई रिश्तेदार या सम्बन्धी मुझे धन नहीं देता। लोग सहायता न देने के लिए अलग अलग बहाने बनाते हैक क्यूंकि सभी यह सोचते है कि यह धन जुआ खेलने में लगा देगा। वृद्ध मनुष्य का बाज़ार में जैसे कोई लाभ नहीं रहता वैसी ही हालत एक जुआरी की होती हैं। चौथे मंत्र में आया है कि जुआरी के साथ साथ उसकी पत्नी का भी मान चला जाता हैं। जुएं में हारने पर आखिर में एक जुआरी अपनी पत्नी को दाव पर लगा देता है। तो उसकी पत्नी का भी अन्य लोग अपमान करते है। इस सूक्त के नौवें मन्त्र में जुएं के पासों का सजीव और काव्यात्मक चित्रण है। इसमें लिखा है कि यद्यपि पासे नीचे चौसर पर रहते है पर उछलते है। तब अपना प्रभाव दिखाते है। जुआरियों के हृदय में हर्ष-विवाद आदि भावों की सृष्टि करते हैं। उनके मस्तक को जितने पर ऊँचा कर देते है और हारने पर झुका देते है। ये बिना हाथ वाले है। फिर भी हाथ वालों को पराजित कर देते है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये पासें अंगारे है जिन्हें कभी बुझाया नहीं जा सकता। ये शीतल होते हुए भी पराजित जुआरी के हृदय को दग्ध कर देते हैं। इस सूक्त के दसवें मंत्र में जुआरी के परिवार की दशा का अत्यंत मार्मिक वर्णन है। धन आदि साधनों से वंचित और पति द्वारा उपेक्षित जुआरी की पत्नी दुःखी रहती है। वह अपनी और अपनी संतान की दशा पर विलाप करती हैं। ऋण के भोझ तले दबा जुआरी आय से वंचित होकर कर्ज चुकाने के लिए रात में अन्यों के घरों में चोरी करने लगता हैं। 10वें मंत्र में आया है कि दूसरे के घर में सजी धजी और सुख संपन्न स्त्रियों को देखकर और अपनी हीन-दुखी स्त्री और टूटे फूटे घर की अवस्था देखकर जुआरी का चित व्यथित हो उठता है। वह निश्चय करता है कि अब मैं प्रात:काल से पुरुषार्थ से जीवन यापन करूँगा। सही मार्ग पर चलकर अपने पारिवारिक जीवन को सुख और समृद्धि से युक्त करूँगा। यही संकल्प लेकर वह प्रात: कर देता है कि वह आज से कभी जुआं नहीं खेलेगा। क्यूंकि जो जूए को खेलेगा। उसकी यह प्रवृति उसे नकारा और निकम्मा बना देती है और अंतत उसे पतन का कारण बनती है।

इसीलिए 13 मन्त्र में इस सूक्त की फलश्रुति अर्थात जूए के त्याग के लाभ का ऋषि वर्णन करते है-

हे मनुष्य जुआ मत खेल! खेती कर! परिश्रम और श्रम से कमाये गए धन को सब कुछ मान। उसी में संतोष और सुख का अनुभव कर। पुरुषार्थ से तुम्हें अमृतत्तुल्य दूध देने वाली गौ मिलेगी। पति परायणा सेवा करने वाली पत्नी मिलेगी। परमात्मा भी उसके अनुकूल सुख देगा।

अंतिम 14 वें मंत्र में जुआ छोड़ने के पश्चात अपने अन्य जुआरी मित्रों को भी जुए के त्याग के लिए प्रेरित करे। ऐसा सन्देश दिया गया है। हमारे समाज में हम चारों ओर देखे तो हम पाएंगे कि संसार में जो भी दशा एक जुआरी की, उसके परिवार की बताई गई है। वह नितांत सत्य है। एक राजा का कर्त्तव्य समाज की नशा, दुर्व्यसन आदि से रक्षा करना भी हैं। इसलिए वेदों की अत्यंत मार्मिक अपील को दरकिनार कर सरकार को जुआ, सट्टेबाजी आदि से समाज की रक्षा करनी चाहिए।

 डॉ विवेक आर्य