कविता

कविता – सावन घन

पुलकित है प्यासा मन
नाच उठा अंतर मन
बरसे यह सावन घन
उमड़ घुमड़ बरसे||

मेघों से याचक बन
देखो प्रेमी चातक
स्वाती की एक बूँद
माँग रहा कबसे||

बरसे अविरल बादल
नेह के आँगन आँगन
प्रियतम की प्रीत संग
तन – मन सब भीगे ||

वह छूटा बचपन
उपवन है स्म्रतियों का
कागज की वह नौका
आकृति बन निकले ||

बचपन का चंचल मन
यौवन का अल्हड़पन
लौटे फिर सावन घन
जीवन मुस्काये ||

चहुँ दिस आनंद मंगल
हर्शित हो जन जीवन
जग जीवन मंजूषा
नेह से भर जाये ||

मंजूषा

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016