गीतिका/ग़ज़ल

बहुत दिनों के बाद खरीदे हैं मैंने

बहुत दिनों के बाद खरीदे हैं मैंने।
बेच के आँखे ख्वाब खरीदे हैं मैंने।

गिरवी रख के पंख उड़ाने सीखी हैं,
खुशियों के लम्हात खरीदे हैं मैंने।

दौलत सारी लुटा फकीरी ओढ़ी बस,
तेरी खातिर जज़्बात खरीदे हैं मैंने।

मुझे नचाते हैं जब भी जैसे चाहें,
क्यों ऐसे दिन रात खरीदे हैं मैंने।

जाने कैसे कितना समझा पाउँगा,
क्योंकर ऐसे हालात खरीदे हैं मैंने।

कमज़ोरों पे हुक्म चला इतराता हूँ,
झूठे से कुछ रुआब खरीदे हैं मैंने।

अपनों के सपनों में हीरे जड़ने को,
खुद ही ये बनवास खरीदे हैं मैंने।

हरे गुलाबी कागज़ की ताकत से ‘लहर’,
इस युग के सुकरात खरीदे हैं मैंने।

डॉ मीनाक्षी शर्मा

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा