हास्य व्यंग्य

कड़वी बात और कड़वे घूंट के सेवन का समय

उनसे बड़ी ही उम्मीदें लगाई गई हैं।शायद यह सोचा गया हो कि कमल को कमल ही टक्कर दे सकता है और संभवतया इसीलिए देश के ह्रदय प्रदेश में पार्टी के मुखिया होकर वे बिखरे मोतियों को बटोरने में लगे हैं।बिखरे मोतियों को बटोरना ,सहेजना और एक लर में पिरोना किसी जादूगरी से कम नहीं है।
वैसे राम जी को भी चौदह वर्ष के वनवास के बाद राज्य वापस मिल पाया था ।यहाँ तक कि पाण्डव भी बारह वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद महाभारत के युद्ध में कौरवों पर विजय हांसिल कर पुनः सत्ता सुन्दरी का वरण कर सके थे।तब यहाँ तो इनका सत्ता से बिछोह करीब पन्द्रह वर्षो से होने जा रहा है! इतनी विरह वेदना आखिर कोई कैसे सह सकता है !क्या अब भी वे सत्ता की चाहत से दूर रहें! आगे भी विरह गीत गाते रहें!जनता उन्हें आखिर कब तक विपक्षवास में रखेगी!कभी तो सत्ता से मधुर मिलन की आस पूरी होगी।
अब जब वे प्रदेश पार्टी के मुखिया होकर आए हैं तो उनकी पार्टी के वरिष्ठ और कनिष्ठ सभी से अपेक्षाएँ होना स्वाभाविक है।वैसे यह भी सही है कि जितनी अपेक्षा वे कर रहे हैं उससे ज्यादा अपेक्षा पार्टी आलाकमान से लेकर साधारण कार्यकर्ता कर रहा है क्योंकि बिना सरकार नहीं सहकार! और फिर जनता की सेवा के लिए सत्ता का होना भी तो जरूरी है जी।इसीलिए उन्होंने भी पार्टी के वरिष्ठ जनों और पूर्व विधायकों से भी कह दिया है कि अगले चार महीने सब कुछ भूल जाएं।यह कड़वे घूंट पीने और एक-दूसरे की गलतियों को माफ कर नया रास्ता खोजने का समय है!यही सत्ता से पुनर्मिलन की राह है।उन्होंने बिल्कुल सही फरमाया है कि कड़वे घूंट पीना है।
यही सही समय है जब कड़वी बात कहकर गंदगी नहीं फैलाना है ।वरना अभी तो गंदी बात का दौर हर तरफ बदस्तुर जारी है।फिल्मीस्तान से होते हुए यह गंदी बात राजनीति के गलियारों में पैठ जमा चुकी है।और यही गंदी बात कड़वी बात भी होती जा रही है।अपनों की गलतियों को निकालेंगे या बतायेंगे तो वनवास काल बढ़ता ही जाएगा।पन्द्रह वर्ष से बढ़कर यह बीस वर्ष भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा।वैसे यह समय तो दूसरो की गलतियों को जनता के सामने लाने का है और अपनो की गलतियों पर पर्दा डालने का!निश्चित रूप से अपनों की गलतियों को छुपाना कड़वा घूंट पीने के समान है लेकिन क्या करें,कड़वा घूंट तो पीना-पिलाना पड़ता है।जीत जायेंगे तब भी कड़वे घूंट और हार गए तब भी ! चुनाव के पहले भी कड़वे घूंट और चुनाव के बाद भी कड़वे घूंट।कष्टपूर्ण बात होने पर कड़वे घूंट पीना ही पड़ते हैं वहीं दूसरी ओर कड़वे घूंट पेय पदार्थ के रूप में भी सेवन करना होते हैं।
कई बार कड़वा सच सामने आ जाता है लेकिन कड़वी सच्चाई को लोग पचा नहीं पाते हैं।फिर भी हरेक समय मीठा स्वाद ठीक नहीं रहता क्योंकि ज्यादा मिठास मधुमेह को आमंत्रण दे देती है।इसीलिए नीम और करेले का कसैला स्वाद भी चखना पड़ता है।
जिस तरह से खुशियाँ मनाने के लिए कड़वे घूंट को हलक के नीचे उतारा जाता है, उसी तरह से गम गलत करने के लिए भी कड़वे घूंट ही काम में लिये जाते हैं।अब गम गलत होता है या नहीं,यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन हाँ आदम जात जरूर गलत साबित हो जाता है।खैर,चुनाव में भी जीत के लिए कड़वे घूंट का ही पेय परोसा जाता है, चाहे कार्यकर्ता हो या मतदाता उनकी पसन्द भी तो यही है!
इसीलिए चाहे कड़वा सच सामने हो या फिर कड़वे वचन कहे जा रहे हों या फिर मतदाता कड़वी बात कह जाए,कड़वे घूंट पीकर गलतियों को नजर अंदाज करना ही श्रेयस्कर है तभी सत्ता के वनवास से पार पाया जा सकता है।यही बात उन लोगों पर भी लागू होती है जो सत्ता में बने हुए हैं और फिर से सत्ता में आने की चाहत रखते हैं जो जितने ज्यादा कड़वे घूंट पिएगा और गलतियों को नजर अंदाज करेगा ,सत्ता सुंदरी उतनी ही ज्यादा उसकी ओर आकर्षित होकर उसका वरण करेगी।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009