स्वास्थ्य

ध्यान करने की सरल विधि

ध्यान की महिमा से सभी लोग परिचित हैं। पर कैसे करें इस बारे में भ्रम में पड़े रहते हैं और इसीकारण शुरू नहीं कर पाते। वास्तव में ध्यान करने की अनेक विधियां हैं। हर बडे योगाचार्य ने ध्यान की अपनी अलग विधि बना रखी है और उसका अलग नाम भी रखा हुआ है। ताकि उनकी विशिष्टता बनी रहे। यह भी अहंकार का एक रूप है।

यहाँ मैं ध्यान करने की अनेक पद्धतियों के विस्तार में गये बिना इसकी सरलतम विधि के बारे में बताऊंगा। यदि आपका उद्देश्य ध्यान से मानसिक शांति और प्रसन्नता प्राप्त करना है तो आप इसको अपना सकते हैं और पूरा लाभ उठा सकते हैं।

1. सबसे पहले ध्यान के लिए एक ऐसा समय निश्चित कीजिए जब आप लगभग खाली रहते हों और किसी भाग-दौड़ में न लगे रहते हों। इसके लिए प्रात: उठने के बाद या रात्रि को सोने से ठीक पहले का समय सबसे अच्छा है।

2. लघुशंका-दीर्घशंका आदि से निवृत्त हो लीजिए ताकि आपको बीच में न उठना पड़े। यदि स्नान करके ध्यान करें तो और भी अच्छा है, पर यह अनिवार्य नहीं है।

3. ध्यान करने के लिए ऐसी जगह का चुनाव कीजिए जहाँ आप बिना किसी व्यवधान के देर तक बैठ सकें। अपने घर या बिल्डिंग की छत या कोई पार्क या किसी नदी का किनारा इसके लिए सबसे अच्छा रहता है क्योंकि वहाँ हवा शुद्ध होती है। इनके अभाव में आप अपने घर के किसी एकांत कमरे या बरामदे का भी उपयोग कर सकते हैं या अपने बिस्तर पर ही बैठकर कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में अपने घर वालों को स्पष्ट निर्देश दे दें कि चाहे प्रलय ही क्यों न आ जाये, पर कोई भी आपके ध्यान में बाधा नहीं डालेगा।

4. किसी चटाई, दरी या कम्बल को बिछाकर आराम से बैठ जाइए। नंगी ज़मीन या घास पर ध्यान करना उचित नहीं। कुछ न कुछ बिछावन अवश्य होनी चाहिए।

5. अब किसी ऐसे आसन में बैठिए जिसमें आप देर तक यानी लगभग ५ मिनट तक बिना हिले-डुले या पैर बदले बैठ सकें। सुखासन या सिद्धासन इसके लिए सबसे अच्छा रहता है। साधारण पालथी मारकर बैठने को सुखासन कहते हैं। सिद्धासन लगाने के लिए पहले एक पैर को मोड़कर जंघामूल में लगाइए और फिर दूसरे पैर को उठाकर पहले पैर की पिंडली पर (जाँघ पर नहीं) रखिए। जो व्यक्ति पैर मोड़कर बैठने में असमर्थ हैं वे किसी कुर्सी पर सीधे बैठकर ध्यान कर सकते हैं। किसी भी स्थिति में रीढ़ की हड्डी और गरदन एकदम सीधी अर्थात् ज़मीन के लम्बवत् रहनी चाहिए।

6. सबसे पहले तीन मिनट तक अनुलोम-विलोम प्राणायाम कीजिए जिसमें बारी-बारी से बायें और दायें नथुने से साँस ली जाती है और विपरीत नथुने से निकाली जाती है। यह प्राणायाम तीन से पाँच मिनट तक कीजिए। इससे मन बहुत कुछ शान्त हो जाएगा और आप ध्यान के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जायेंगे। अब अगर आप चाहें तो पैर बदल सकते हैं यानी जो पैर नीचे है वह ऊपर और जो ऊपर है उसे नीचे कर सकते हैं ताकि दोनों पैरों पर बराबर जोर पड़े।

7. अब ध्यान प्रारम्भ कीजिए। इसमें आँखें बन्द करके अपने ध्यान को किसी एक बिन्दु पर केन्द्रित कीजिए जैसे भ्रूमध्य, नासिका का अग्रभाग, आपका हृदय आदि। भ्रूमध्य पर ध्यान लगाना सबसे अच्छा है क्योंकि वहाँ इड़ा-पिंगला-सुषुम्ना की त्रिवेणी होती है और वहीं आज्ञा चक्र भी होता है जिससे हमारा मस्तिष्क संचालित होता है। यदि प्रारम्भ में यह आपको कठिन लगे तो केवल अपनी साँसों के आवागमन पर ध्यान लगाइए। देखिए कि साँस आ रही है-जा रही है।

8. ध्यान करते हुए आपका मन इधर उधर भटकता है, तरह-तरह के विचार मन में आते हैं। उनको ज़बर्दस्ती मत रोकिए, बल्कि अपने मन को उसी बिन्दु पर ले जाने की कोशिश कीजिए जिस पर आप ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं। धीरे-धीरे आपके मन का भटकना कम होता जाएगा और ध्यान लगने लगेगा।

9. निश्चित अवधि तक ध्यान करने के बाद गायत्री मंत्र बोलिए और प्रभु को धन्यवाद देकर उठ जाइए।

10. प्रारम्भ में पाँच मिनट ध्यान करना पर्याप्त रहेगा। फिर हर दो तीन दिन बाद एक मिनट बढ़ाकर धीरे-धीरे २० मिनट या अधिक समय तक भी पहुँच सकते हैं।

ध्यान की अवधि निश्चित करने के लिए घड़ी के अलार्म की आवश्यकता नहीं है। बस संकल्प कर लीजिए कि इतने मिनट करना है। और आप लगभग उतने ही मिनट बाद अपने आप आँखें खोल देंगे। कुछ कम-अधिक समय हो जाये तो भी चिन्ता की कोई बात नहीं है।

ध्यान हमेशा प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिए और उसके बाद भी प्रसन्नमुख रहना चाहिए। इसमें नियमित होना अनिवार्य है। जैसे-जैसे आप ध्यान में आगे बढ़ेंगे, वैसे वैसे आपको नवीन अनुभव होंगे। इन्हें शब्दों में नहीं बताया जा सकता, बल्कि स्वयं ही अनुभव किया जा सकता है।

विजय कुमार सिंघल 
आषाढ़ शु १, सं २०७५ वि (१५ जुलाई, २०१८)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com