लघुकथा

आकाश से ऊपर

नीलिमा अपने घर में बैठी सोच में डूबी हुई जैसे सारा क़िस्सा अभी हाल में ही हुआ हो।पीछे की ज़िन्दगी में जाती है …..

घर में काम करने वाली शांता बाई नें एक दिन अपनी बेटी (ममता)को काम करने के लिये भेजा। उसके बात करने का तरीक़ा बहुत ही सुंदर था। एैसा लग रहा था जैसे वह बहुत पढ़ी-लिखी हो। मेरा मन उससे काम कराने का बिल्कुल नहीं कर रहा था। उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। वो हिचकिचाते हुए मेरे पास वाली सीट पर बड़े अदब से बैठी जैसे कोई बहुत पढ़ा-लिखा व्यक्ति बैठता है ……

मैंने बड़े प्यार से उससे पूछा , “बेटी तुमने शिक्षा कहॉ तक ली है और कौन से विद्यालय से”?

“जी पाँचवी तक” उसने उत्तर दिया ।

मेरे मन में एकसाथ कई पृश्न हिचकोले लेने लगे ?

“आगे पढ़ाई क्यों नहीं की ? फिर इतना शिष्टाचार कहॉ से आया ?” मैंने पूछ ही लिया ?

उसने जो उत्तर दिया वह मेरे मन को झकझोर गया……

“मुझे यह काम बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है , मुझे पढ़ना बहुत भाता है , एक घर में मॉ काम करती हैं मैं भी वहॉ बचपन से जाती हूँ और सुन-सुनकर इतना सीख गई हूँ ।”

मेरी ऑंखें फटी की फटी रह गईं यह सुनकर !!!!

मैंने मन ही मन निर्णय किया कि अब तो कुछ करना पड़ेगा । मैंने पूछा,” क्या तुम “आकाश से ऊपर “उड़ना चाहती हो ।”

“हॉ मैडम मैं कुछ बड़ा करना चाहती हूँ “ वह ख़ुश होते हुए बोली पर मेरी मॉ ……

मॉ से मैं बात करूँगी तुम चिन्ता मत करो ।

अगले दिन से उसको पूरे दिन के लिये मैंने अपने पास बुला लिया और बहुत सारी किताबें लाकर दीं । प्राइवेट फ़ार्म भर दिया आगे की पढ़ाई का। मुझे पढ़ाने का काफ़ी शौक़ था और समाज सेवा का भी। वो भी मेहनत से पढ़ाई करती गई और आगे बढ़ती गई ……

मुझे उसके घरवालों को समझाने में काफ़ी जद्दोजहत करनी पड़ी थी पर मेरा “दृढ़संकल्प “आख़िर काम आ ही गया था । आज वो एक आई०पी०एस० आफीसर है ।मुझे अपनी मॉ से बढ़कर मानती है । इतने में फोन बज जाता है और वह पिछली ज़िन्दगी से बाहर आती हुई सोचती है …..अपनी सोच हमेशा आकाश से ऊपर रखनी चाहिये तभी पूरी होती है।

— नूतन

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक