धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

शिवमय है सावन 

कहते हैं सृष्टि के कण – कण में ईश्वर का वास होता है और ये हमारी आस्था ही  है जिसके कारण हम उनके दिव्य स्वारूप का दर्शन कर पाते हैं | श्रावण मास आशुतोष भगवान शंकर का महीना माना जाता है | इस माह में भगवान भोेलेभंडारी की पूजा का विशेष महत्व है | पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता कि समुद्र का मंथन सावन के इसी पावन महीने में हुआ था एवं समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे | समुद्र मंथन से प्राप्त इन 14 रत्नों में 13 र्न देवताओं एवं दानवों ने आपस में बांटा गया | समुद्र मंथन से प्राप्त एक रत्न विष था जिसे भोलेनाथ पान कर गए और अपने कंठ में समग्र कर लिया | विष पान के पश्यात भोलेनाथ के कण्ठ में भीषण गर्मी एवं ताप उत्पन्न हुआ , जिसे कम करने के लिए सभी देवताओं ने जल , दूध , दही इत्यादि सभी शीतल वस्तुं भगवान भोलेनाथ को शीतल करने हेतू अर्पित किे | यही ारण है कि श्रावण मास में भगवान भोले शंकर को जल के अतिरिक्त दूध , दही शहद इत्यादि से शंकर भगवान का अभिषेक किया जाता है | श्रावण के इस पावन महीने में मानस पूजन का भी विधान है |
            एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालनहार भगवान विणु अपनी सम्पूर्ण दायित्व से मुक्त होकर योग निद्रा में चले जाते हैं | इस दौरान वे अपना पूर्ण कार्यभार भगवान शंकर जी को सौंप देते हैं | इसलिए सृष्टि का संचालन भगवान शंकर करते हैं और इसी श्रावण महीने से भूतनाथ गौरापार्वति के साथ विराजमान रहकर पृथ्वीवासिओं का दुःख – दर्द समझते हैं एवं अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं |
              कहा जाता है कि भगवान शिव रावण माह के पविर महीे में ही पृथ्वी पर अवतरित होकर अपने ससुराल हिमालय गए थे | जहां उनका स्वागत अर्घ्य एवं जलाभिषेख से किया गया था | इसी कारण लोगों में मान्यता है कि प्रयेक श्रावन मास को भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित हो अपने ससुराल जाते हैं | यही समय पृथ्वी वासी उनकी कृपा पाने का उचित समय समझते हैं |
        कहा जाता है कि 89 हजार ऋषियों ने जब ब्रह्मा जी से महादेव को प्रसन्न करने की विधि पूरी बताएं  तो उन्होंने कहा कि महादेव सौ कमल चढ़ाे से जितने प्रसन्न होते हैं , उतने ही प्रसन्न वे केवल एक नीलकमल चढ़ाने से होते हैं , और एेसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर मात्र एक ही बेलपत्र चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं | कहते हैं बेलपत्र के वृक्ष के नीचे महादेव का वास होता है | इसलिए बेल के वृक्ष के जड़ की पूजा की जाती है | मान्यता है बेल के वृक्ष को सींचने से सभी
तीर्थों का फल प्राप्त होता है | बेलपत्र शिवजी का आहार भी माना जाता है | इसलिए पूजन स्वरूप उन्हें बेलपत्र अर्पित किये जाते हैं | भोलेनाथ के शिवलिंग पर तीन पत्तियोंवाले उल्टा कर अर्पित करना  चाहिए | बेल पत्र में कोई चक्र या वज्र नहीं होने चाहिए |
      भोलेभंडारी को आक, बेलपत्र , धतूरा , भांग इत्यादि अर्पित की जाती है , जो अन्य देवी -देवताओं को अर्पित नहीं किए जाते हैं | शिव शंकर को सफ़ेद पुष्प अर्पित किए जाते हैं परन्तु उन्हें कनेर के पुष्प  एवं लाल उड़हुल के पुष्प अर्पित नहीं किये जाते हैं |
भगवान भोलेनाथ केतकी एवं कमल के पुष्प भी ग्रहण नहीं करते | परंतु कमल पुष्प की पंखुड़ियाँ उन्हें चढ़ाई जा सकती हैं | शिव पूजन में शंख नाद करना निषेध है क्यूंकि इसकी ध्वनि से भुत- पिशाच जो शिव जी के परम एवं अतिप्रिय भक्त माने जाते हैं वे दूर हो जाते हैं |
विनीता चैल

विनीता चैल

द्वारा - आशीष स्टोर चौक बाजार काली मंदिर बुंडू ,रांची ,झारखंड शिक्षा - इतिहास में स्नातक साहित्यिक उपलब्धि - विश्व हिंदी साहित्यकार सम्मान एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित |