हास्य व्यंग्य

हे भगवान मरने के लिए पेट की भूख भी !

आप कहते हैं कि कितनी दुखद और शर्मनाक बात है कि पूर्वी दिल्ली में भूख,गरीबी और अभाव के कारण तीन मासुम बच्चियों ने दम तोड़ दिया।भूख के कारण दम तोड़ देने की बात पर ही क्या आप घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं!हाल ही के दिनों में मासूम बच्चियों की जान पर बन आई है।वहशी दरिंदे उन्हें नोंच खसोट रहे हैं नारी अस्मिता और अस्तित्व की इस लाचारी और बेबसी पर तब भी तो आप अपने इन घड़ियाली आंसुओं के साथ आ जाते हो और सार्वजनिक स्थानों पर मोमबत्ती जलाकर रस्म अदायगी कर जाते हो।ठीक है यह सब करके आप तो अपने कर्तव्य का निर्वाह होना प्रदर्शित कर देते हो और अपने प्रभुत्व का दंभ भी दिखा देते हो।
स्त्री को देवी का दर्जा तो दे देते हो और कहते भी हो कि – “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” लेकिन क्या इन शास्त्रोक्त आधारों पर उन्हें जीने का अधिकार दे दिया जाना चाहिए!कभी उनसे पूछा और जाना है कि उन्होंने इतना सम्मान पाया है!
बच्चियों ने भूख सहन न कर पाने के कारण दम तोड़ा या जग की अमानवीय उपेक्षा के कारण।फिर भी वे यह बताने की स्थिति में नहीं है कि बच्चियों ने भूख के कारण ही दम तोड़ा।अभी तो मजिस्ट्रियल जाँच होगी।हो सकता है कि न्यायिक जाँच भी करवा ली जाए या सीबीआई जाँच की मांग भी उठ खड़ी हो।वे अभी कुछ बताने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि अभी तक सत्य उनके करीब नहीं पहुँचा है।सत्य को प्रकट करने वाली कागजी रिपोर्ट ही अथेंटिक होती है।भूख से मरने की दृष्टव्य यानी आँखो देखी सुनी-सुनाई बात ही तो है,भला उसपर कैसे विश्वास कर लें।
भूख से मरने की बात तो जाँच में ही सामने आएगी।डॉक्टर जब तक पेट की चीरफाड कर पुष्टि नहीं करेंगें तब तक भूख साबित कैसे होगी!अभी तो जाँच चलेगी,उत्तरदायित्व का निर्धारण होगा।आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलेगा तब जाकर बात सामने आएगी कि बच्चियों ने असमय ही नश्वर शरीर को क्यों त्याग दिया।हाँ,यह बात जरूर है कि च्यवनप्राश खाते रहने के बाद भी इंसानी याददाश्त बहुत कमजोर रह जाती है तभी तो पुरानी घटना स्मृति से विलोपित हो जाती है और नई दिमाग पर चढ़कर बोलती है।
खैर,प्रश्न यही है कि क्या उन्हें जीवित रहना था या फिर उनके माता-पिता को इतनी समझ होना थी कि कन्या भ्रूण पनपने के पहले ही उन्हें खटिया के पाये दिखा देते।माँ-बाप की गलती को तो उन्होंनें सुधार दिया भूख से मरकर।उन्होंने तो अपने नशेड़ी बाप को पालन-पोषण की जवाबदारी से मुक्त कर दिया।उस माँ को परेशानियों से छुटकारा दिलवा दिया जो मानसिक अस्वस्थता के कारण स्वयं का ध्यान रखने में असमर्थ थी।तीन कन्या संतान के बाद और कितनी संतान को जन्म देना है, इसकी सुध न उसे है और न नशे में बेसुध रहने वाले बाप को है।तब और आने वाली संतानों के लिए उन मासूमों ने ही रास्ता साफ कर दिया यह सोचकर कि शायद उनके बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाए और इस खुशी से माँ का मानसिक स्वास्थ्य सुधर जाए और बाप की नशे की लत छूट जाए। वैसे भी उन्हें जीवित क्यों रहना था !क्या कोई बता सकता है कि जब चारों ओर भूखे भेड़िये आँख गड़ाये घूम रहे हों तब क्या उन कन्या भक्षियों से कोई उन्हें बचा पाता और ख़ुदा न ख़्वास्ता उन भेड़ियों से वह बच भी जाती तो क्या दहेज दानव उन्हें छोड़ देते!वे कैसे अपना मान-सम्मान,अपनी इज्जत-आबरू बचा पाती।शायद अब ऊपर जाकर ईश्वर का आभार प्रकट कर रही हों कि अच्छा है उसने पेट की भूख दी और भूखे पेट जीवन लीला समाप्त करने का रास्ता खुला रखा।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009