मुक्तक/दोहा

“छंद, रोला मुक्तक”

पहली-पहली रात, निकट बैठे जब साजन।

घूँघट था अंजान, नैन का कोरा आँजन।

वाणी बहकी जाय, होठ बेचैन हो गए-

मिली पास को आस, पलंग बिराजे राजन।।-1

खूब हुई बरसात, छमा छम बूँदा बाँदी

छलक गए तालाब, लहर बिछा गई चाँदी

सावन झूला मोर, झुलाने आए सैंया

ननदी करें किलोल, सिखाएं सासू दादी।।-2

महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ