कविताक्षणिका

प्रेम के गलियारे

क्यों भटकते हो
घृणा के और वैर के
गलियों और चौबारों में?
घूमना है तो घूमो
प्रेम के गलियारों में
भले ही लगते हों छोटे 
प्रेम के गलियारे
यहां मिलेंगे
प्रेम के भंडार
आनंद के अंबार
स्नेह के ख़ज़ाने
अपनेपन के नज़राने
खुशियों की खुराक
मन का गुलशन 
हो जाएगा बाग-बाग, 
मन का गुलशन 
हो जाएगा बाग-बाग, 
मन का गुलशन 
हो जाएगा बाग-बाग.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “प्रेम के गलियारे

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , घिरणा और वैर विरोध आज बहुत बढ़ गिया है .इस का फायदा कोई नहीं ,बस नुकसान ही नुक्सान हैं . थोडा सा सोच कर चलें और पियार भावना से रहें तो सभ तरफ दुनीया भली नज़र आएगी .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत अच्छा लगा. आपने सही कहा- दुनिया बहुत भली है, बस अपनी नजर भली रखो, सब भला-ही-भला है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद

  • लीला तिवानी

    प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा,
    विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी,
    साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा,
    किसने कहा रिश्ते मुफ़्त मिलते हें,
    मुफ़्त तो हवा भी नहीं मिलती,
    एक सांस भी तब आती है,
    जब एक सांस छोड़ी जाती है.

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