लघुकथा

मृगतृष्णा

बहुत प्यारी सी सहेली थी वो मेरी। वक़्त के साथ दोनों अपनी अपनी दुनिया में चले गए पर बचपन की बहुत सी यादें लेकर हमारी दोस्ती का पेड़ अब भी लहलहा रहा था।  अचानक उसके फ़ोन और मैसेज आने लगभग बंद हो गए, online दिखती पर बात नहीं करती।साफ समझ में आ रहा था की कही और व्यस्त है। कई बार पूछा पर संतुष्ट करता जवाब कभी नहीं आया। दिन और महीने बीतते गए।
ट्रिंग ट्रिंग… मेरा मोबाइल बजा..ताज़्ज़ुब हुआ, उसका कॉल!!
 सुबकती हुई आवाज़ में उसने पूछा. कहाँ है तू?
यहीं.. मुम्बई में ही! क्या हुआ तुझे?
एक साँस में वो इतना कुछ बता गई की यकीन करना मुश्किल था।
पति शुरू से थोडा रूखा किस्म का था और ये प्यारी सी सुन्दर। FB में आई, अनजान लोगों से जुडी, तारीफ़ मिलने लगी जो पति से कभी मिली नहीं। बस उन्ही में से एक के नज़दीक होती चली गई। और एक दिन सही, गलत, समाज सब भूल कर एक अनजाने के लिए घर छोड़ कर मुम्बई पहुँच गई। यहाँ आकर पता चला की वो जनाब तो अपना फ़ोन नंबर और FB account बंद कर गायब हो चुके हैं। ये बदहवास स्टेशन में खड़ी है।
टैक्सी में बैठ कर उसे लेने जाते हुए एक यही बात दिमाग में हथौड़े मार रही थी की एक पढ़ी-लिखी लड़की ऐसे कैसे किसी अनजान के झाँसे में आकर अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर सकती है।
ऋचा