कविता

इजहार प्यार का

घने वाग – वगीचों के बीच
एक नव निर्मल लड़की देखी बीच ,
उसके दाँत तारों से चमक रहे थे मुख मण्डल के बीच
वह गिरी गिद्ध होकर
सहसा मैंने उसे उठाया ,
नया जन्म सा उसने पाया
इतने में उसका पागल प्रेमी आया  ।
आँख दिखाकर उसने पूछा
यह मेरी प्रेमिका वेवफा है
इसने मेरे साथ दगा किया है
हटजाओ – हटजाओ मुझे प्यार का इजहार करने दो  ।
अपने प्यार से स्पर्श करने दो
वस
खफा हुई अपने पागल प्रेमी की वातों को सुन
देख प्रेमी के इन प्रलापो को
देख प्यार के इन स्पर्शो को ,
मैं मन ही मन झूमने लगता
जन प्राणी भी ऐसे होते है
प्यार करके भी रोते है ।
वो प्यार मोहव्वत के आँसू थे
प्यार को अग्रसरिता पर लाने के आँसू थे ,
आँसू ऐसे चमक रहे थे
उन दोनों के नयनों में दमक रहे थे   ।
प्यार भरी सरगर्मियां थी  ।
दोनो के न्यारी – न्यारी उमंगे थी
वे करके प्यार मगन मुग्ध हो जाते
वार – वार प्यार से हँस – हँस जाते  ।।

  सन्तोष पाठक

संतोष पाठक

निवासी : जारुआ कटरा, आगरा