स्वास्थ्य

जीवन शैली और स्वास्थ्य

इस बात पर प्रायः सभी चिकित्सक एकमत हैं कि हमारी जीवन शैली का हमारे स्वास्थ्य से सीधा सम्बंध है। उचित और सात्विक जीवन शैली से जहाँ उत्तम स्वास्थ्य बनता है और बीमारियाँ दूर रहती हैं, वहीं गलत जीवन शैली से स्वास्थ्य बिगड़ता है और अनेक प्रकार की बीमारियाँ घेर लेती हैं।

वास्तव में आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर लगभग सभी बीमारियाँ हमारी गलत जीवन शैली के कारण होती हैं और जीवन शैली में सुधार करके हम उन बीमारियों से पूर्णतः नहीं तो बहुत सीमा तक छुटकारा पा सकते हैं। पूर्णतः इसलिए नहीं कि कई बार गलत जीवन शैली से इतना स्थायी दुष्प्रभाव पड़ चुका होता है कि उसको पुनः पूर्व स्थिति में लाना लगभग असम्भव होता है। लेकिन ऐसे मामले बहुत कम होते हैं। अधिकांश बीमारियों को तो हम अपनी जीवन शैली में आवश्यक सुधार करके ही ठीक कर सकते हैं।

जीवन शैली से हमारा तात्पर्य अपने खान-पान, दिनचर्या, रहन-सहन, और सामाजिक व्यवहार से है। ये सभी तत्व जीवन शैली के अंग हैं और सभी महत्वपूर्ण हैं। हम यहाँ इन सभी तत्वों पर क्रमशः संक्षेप में प्रकाश डालेंगे।

खान-पान जीवन शैली का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग है। हम जो भी खाते-पीते हैं उसका हमारे स्वास्थ्य पर तत्काल और सीधा प्रभाव पड़ता है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खान-पान शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक हो। स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाला अन्न, मौसमी सब्जियाँ और फल, गाय का शुद्ध दूध और उनसे बनी स्वास्थ्यवर्द्धक वस्तुएँ सात्विक खान-पान माना जाता है। वास्तव में ये ही स्वास्थ्यप्रद होते हैं। इसके विपरीत वस्तुएँ तथा अंडा, माँस, मद्य आदि सभी तामसी आहार हैं। सात्विक भोजन से ही तन और मन सात्विक बनता है और तामसी भोजन से तामसी बनता है। कहावत भी है- जैसा खाओगे अन्न, वैसा बनेगा मन। जैसा पियोगे पानी, वैसी बनेगी वाणी।

हमारी दिनचर्या भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। समय पर सोना, जगना, नित्यक्रियायें करना और भोजन करना अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य हैं। जल्दी जगना और जल्दी सोना स्वास्थ्य के मूल सिद्धांत हैं। सुबह देर तक सोते रहने और रात्रि में देर तक जगे रहने का बुरा परिणाम देरी से ही सही हमें भुगतना ही पड़ता है। इसलिए अपवादों को छोड़कर हमें अपने निश्चित समय पर उठ जाना और सो जाना चाहिए। इन दोनों बातों के पालन के लिए यह भी आवश्यक है कि हम निर्धारित समय पर स्नान, जलपान, दोपहर का भोजन और सायंकाल का भोजन करें। इन बातों में मनमानी करने का दुष्परिणाम हमें ही भुगतना पड़ता है।

प्रायः लोग यहीं सबसे अधिक गलती करते हैं। सायंकालीन भोजन के समय वे चाय-नाश्ता करते हैं और फिर देर रात्रि में भोजन करते हैं और उसके तत्काल बाद सो जाते हैं। यह बहुत भयावह है। देर से भोजन करने के कारण उसे पचने का पर्याप्त समय और वातावरण नहीं मिलता। इससे वह बहुत देर से पचता है और फिर बहुत देर तक हमारे मलाशय में पड़े रहकर विकार उत्पन्न करता है। देर से सोने के कारण वे देर से ही जागते हैं, इससे उनको योग-व्यायाम आदि करने का समय भी नहीं मिलता और वे हमेशा अस्वस्थ होने का अनुभव करते हैं। देर से भोजन करने के कारण शरीर स्थूल हो जाना और पेट निकल आना साधारण बात है।

रहन-सहन के अन्तर्गत हमारा पहनावा, घर का वातावरण और आस-पड़ोस आते हैं। हमारा पहनावा मौसम के अनुकूल और समाज की परम्परा के अनुसार होना चाहिए। कहावत है कि ‘जैसा देश, वैसा वेश।’ घर का वातावरण भी स्वास्थ्य के अनुकूल और आनन्दप्रद होना चाहिए, ताकि बाहर से घर आकर हमें शान्ति के कुछ पल प्राप्त हो सकें। हमारा आस-पड़ोस भी अपने अनुकूल परिवारों और व्यक्तियों से पूर्ण होना चाहिए, जिनके बीच आपसी सामंजस्य हो, भले ही बहुत अधिक घनिष्टता न हो।
जो व्यक्ति तनावपूर्ण वातावरण में रहते हैं, उनके स्वास्थ्य पर देर-सबेर बुरा प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी है। इसके अतिरिक्त हमें मौसम के साथ-साथ चलना चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए यह आवश्यक है कि हम गर्मियों में गर्मी सहन करें, जाड़ों में जाड़ा सहन करें और बरसात में कभी-कभी भीगें भी। मौसम अपनी सहनशक्ति से बाहर होने पर ही हमें कूलर, एसी, हीटर आदि कृत्रिम उपायों का सहारा लेना चाहिए।

रहन-सहन के अन्तर्गत हमारे आवागमन के साधन भी आते हैं। बहुत से लोग पैदल चलने में लज्जा का अनुभव करते हैं और थोड़ी दूर सब्जी खरीदने जाने जैसे मामूली कार्यों के लिए भी कार, मोटरसाइकिल आदि वाहनों का उपयोग करते हैं। एक-दो मंजिल चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ की जगह लिफ्ट का प्रयोग करना भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो हमें वाहनों का उपयोग कम करना चाहिए और पैदल चलने तथा सीढ़ियों से चढ़ने-उतरने को प्राथमिकता देनी चाहिए।

हमारा सामाजिक व्यवहार भी स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हम समाज के एक अंग के रूप में उसके कार्यों में भाग लेते हैं, दूसरों के दुःख-सुख में उचित व्यवहार करते हैं, परिचितों से मेल-जोल रखते हैं, तो हमारे मन में एक प्रकार की प्रसन्नता और संतुष्टि का निर्माण होता है, जिसका सुपरिणाम हमें अच्छे स्वास्थ्य के रूप में प्राप्त होता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो, हमें अपनी शक्ति के अनुसार सामाजिक कार्यों में तन-मन-धन से अवश्य भाग लेना चाहिए। समाज से अलग-थलग रहने वाले व्यक्ति प्रायः चिंता, तनाव और अवसाद जैसी शिकायतों से पीड़ित रहते हैं। घोर अवसाद में वे कोई गलत पग भी उठा सकते हैं। इसलिए सबसे अलग-थलग रहने से बचना चाहिए।

इस चर्चा से स्पष्ट है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि सामान्य रूप से स्वस्थ रहने के लिए भी अपनी जीवन शैली को सही रखना चाहिए। गलत जीवन शैली का दुष्प्रभाव स्वास्थ्य पर अवश्य पड़ता है। जिन व्यक्तियों की जीवन शैली गलत होती है, वे भले ही जवानी में उसके बुरे प्रभावों का अनुभव न कर पायें, लेकिन जैसे ही उनकी उम्र 40-45 के आसपास पहुँचती है, वैसे ही उनके स्वास्थ्य में अनेक समस्यायें दिखायी पड़ने लगती हैं। रक्तचाप कम या अधिक हो जाना, शुगर की शिकायत हो जाना, गैस या बदहजमी होना या मूत्र सम्बंधी रोग हो जाना तो उनके लिए सामान्य बात है। इन रोगों को कोई दवा दूर नहीं कर सकती चाहे आप जीवन भर दवाइयाँ लेते रहें। लेकिन अपनी जीवन शैली में सुधार करके बहुत सरलता से इन रोगों से छुटकारा पा सकते हैं।

विजय कुमार सिंघल
श्रावण कृ 6, सं 2075 वि. (2 जुलाई, 2018)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com