कविता

मेरी मुस्कान तुम से है

मेरी मुस्कान तुमसे से ही है,
मेरी हर खुशी तुमसे ही है
तुम्हें देख लेते है तब
बडा सुकून महसूस करते है

तुम्हारी आँखो के आयने में
खुद को पा लेते हैं
मेरे शब्दो में तुम ही हो
मेरे हर रंग में तुम ही हो
दिल के उजाले मेंं तुम ही हो
ढलती धूप में तुम ही हो

मैं सोचती सिर्फ़ तुमको हूँ
मै मानती सिर्फ़ तुमको हूँ
हर पल हर दिन सिर्फ़
तुम्हारा इंतज़ार रहता है

मेरी आरज़ू भी तुम हो
मेरी पूजा भी तुम हो
मेरी इबादत भी तुमसे से है
मन की हर चाहत तुमसे हैं

तुम पास होते हो
सब कुछ कितना हसीन लगता है
तुम नहीं होते हो एक एक पल
एक सदी सा कतता है
आँखो में इन्तजार के मोती छोड़ जाते हो
नम आँखो में भी तुम ही बह जाते हो

तुम साथ हो मेरे ,
जैसे सारा जहां पा लिया हो मैने
तुम्हारी खिलखिलाहट से
मन मोर हो जाता है

— युक्ति वार्ष्णेय “सरला”

युक्ति वार्ष्णेय 'सरला'

शिक्षा : एम टेक (कम्प्यूटर साइन्स) व्यव्साय : सी इ ओ एंड फ़ाउन्डर आफ़ "युकी क्लासेस " फ़ोर्मर सहायक प्रोफ़ेसर, हैड आफ़ कार्पोरेट अफ़ैयर्स, मोटिवेशनल ट्रैनर, करीयर काउन्स्लर , लेखिका, कवियत्री, समाज सेविका ! निवासी : जलाली, अलीगढ़ उत्तर प्रदेश वर्तमान निवास स्थान : मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश प्रकाशन : उत्तरांचल दर्पण, वसुंधरा दीप , न्यूज़ प्रिंट ,अमन केसरी, शाह टाइम्स , पंखुड़ी, उत्तरांचल दीप , विजय दर्पण टाइम्स, वर्तमान अंकुर, वार्ष्णेय पत्रिका, खादी और खाकी, न्यूजबैंच, नव भारत टाइम्स, अमर उजाला, दैनिक जागरण, जन लोकमत, पंजाब केसरी, अमर उजाला काव्य ! विधा : स्वतन्त्र लेखन शौक : इंटरनेट की दुनिया के रहस्य जानना, जिन्दगी की पाठ शाला में हरदम सीखना, पुस्तकें पढना, नए जगह घूमना और वहाँ का इतिहास और संस्कृति जानना, स्कैचिन्ग करना, कैलिग्राफ़ी, लोगो से मुखातिब होना इत्यादि |