कविता

“कुंडलिया”

पकड़ो साथी हाथ यह, हाथ-हाथ का साथ।

उम्मीदों की है प्रभा, निकले सूरज नाथ।।

निकले सूरज नाथ, कट गई घोर निराशा।

हुई गुफा आबाद, जिलाए थी मन आशा॥

कह गौतम कविराय, कुदरती महिमा जकड़ो।

प्रभु के हाथ हजार, मुरारी के पग पकड़ो॥-1

बारिश में छाता लिए, डगर सुंदरी एक।

रिमझिम पवन फुहार नभ, पथ हरियाली नेक॥

पथ हरियाली नेक, प्रत्येक डगर हो ऐसी।

कली-कली मन चाह, राह हो फूलों जैसी।॥

कह गौतम कविराय, पूज्य हैं अपने वारिस।

हर पल रखते ध्यान, मान मुख बरसे बारिश॥-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ