गीतिका/ग़ज़ल

मन की खिड़की खोलो जी

क्यूँ बैठे हो गुमसुम गुमसुम मन की खिड़की खोलो जी
दिल मे क्या क्या राज़ छिपा है हमसे भी तो बोलो जी
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आँसू पीते पीते खारे सागर से हो जाओगे
मुखरित करके दर्द हृदय का इक दिन जी भर रोलो जी
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गहन तमस से बाहर आओ उजियारे की बात करो
उम्मीदें आँखों में भरकर सपने नए संजोलो जी
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पतझड़ का बीता अब मौसम देखो आया है सावन
आज मिटा संताप हृदय का पानी पानी होलो जी
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हुई रात तो गम कैसा कल भोर नवेली आएगी
छँट जाएंगे दुख के बादल सुख से दो पल सोलो जी
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बाँह पसारे कब से मंजिल देखो बुला रही तुमको
नज़र लक्ष्य पर रक्खो अपनी इधर उधर मत डोलो जी
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झगड़े वाले सारे मुद्दे खत्म करो अब बहुत हुआ
सब रूठे रिश्तों में अपनेपन की हाला घोलो जी
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रमा अगर चाहो तो फूटेंगी बंजर में भी कोंपल
उर की गंगा में अपने मन के सब संशय धोलो जी
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रमा प्रवीर वर्मा

रमा वर्मा

श्रीमती रमा वर्मा श्री प्रवीर वर्मा प्लाट नं. 13, आशीर्वाद नगर हुड्केश्वर रोड , रेखानील काम्प्लेक्स के पास नागपुर - 24 (महाराष्ट्र) दूरभाष – ७६२०७५२६०३