लघुकथा

कलाई

अनजाने कैलाश भाई,
स्नेह!
ट्रेन में मिलना हुआ था। मैं अपने पति के आॅपरेशन के लिए जयपुर जा रही थी एवं हम पति पत्नी चिंता कर रहे थे कि अनजाने शहर में रक्त की व्यवस्था कैसे हो पाएगी? तुम सुनते रहे, फिर, संकोच से प्रस्ताव रखा, अपना परिचय दिया, तुम नियमित रक्तदान करते रहे हो, यह भी जाना, निःस्वार्थ सेवा हेतु तुमने रक्तदान कार्ड घर पहुंचकर हमें वाट्सएप पर भेज दिया। इस स्वार्थी संसार में एक अनजान व्यक्ति से ऐसी जीवनदायी सहायता प्राप्त कर हमें ब्लड बैंक से रक्त मिल गया। मेरे पति (जो अब रिश्ते में तुम्हारे जीजू बन गए हैं) का आॅपरेशन सफल रहा। धन्यवाद कृतज्ञता आभार शुक्रिया थैक्स शब्द तुम्हारी पवित्र सेवा के समक्ष बहुत बौने हैं।
भाई! मेरी कलाई में सुहाग की चूड़ियां बनी रहने का श्रेय तुम्हें है। तुम्हारी कलाई के लिए राखी का धागा भेज रही हूँ। स्वीकार करना भाई, एक नई बहन की ओर से। भीगी पलकों से यह लिखने का प्रयास किया है।

सस्नेह –

अनजानी बहन

ज्योति

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी