कहानी

रोज़ी दो सम्मान नहीं

“अरे राम किशन देखो तुम्हारे छोरे (बेटे) की शहादत का खबर अखबार में आया है। हम सभी को उस पर गर्व है । उसने भी गाँव की परंपरा को निभाया है । देखो तो कैसे उसने अकेले सीमा पर सैकड़ों दुश्मनोँ को मारा है “।
“राम किशन कुछ तो बोल कब तक पत्थर बना रहेगा । हमारा छोरा शहीद हुआ है वीरता से लडते हुए, उसकी शहादत पर ऐसे मुंह लटकाना उसे भी अच्छा नही लगेगा। वो शहीद हुआ है लेकिन था तो छोरा तेरा ,रो ले रे तू ,मन हल्का हो जायेगा ।
तुम ही ऐसे हिम्मत हारोगे तो उसकी बींदणी (पत्नि) को कौन सम्भालेगा ।उसका अंश तेरा पोता भी तो छोटा है, उसके लिए रो ले ।”
राम किशन की बींदणी तेज़ है । सारा गाँव उसको (राधा) अंगारा, लड़ाकू, कहता कारण यह है कि, उसके बेटे अमित ने अपनी मर्जी से शादी की। जब उनकी (राधा)शादी हुई थी तब गाँव के किसी भी घर में शौचालय नही था उसने घर मे सबको बोल बोल कर शौचालय बनवाया। गाँव की औरतों को पढ़ाना शुरू किया । उनको आत्म निर्भर बनना सिखाया। शराब पर रोक लगवाई । बच्चों को खास तौर पर लड़कियों को पाठशाला भेजना शुरू करवाया । वो भी ज्यादा नही 12वीं पास थी पर सब काम वो करती ।
अमित तो सीमा पर रहता था ।
कुछ महीनों बाद भारत सरकार से उसको पत्र आया कि ” अमित को मरणोपरांत ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मान दिया जाएगा देश के राष्ट्रपति द्वारा ।” पहले तो वो इसको लेने से मना करती रही पर कुछ सोचने और सबके समझाने पर वो दिल्ली जाने के लिए तैयार हो गई।
ठीक सम्मान वाले समय पर उसने सबके सामने सम्मान लेने से इन्कार कर दिया । वहाँ उपस्थित सभी लोगो मे खलबली मच गई। सब उसको बुरा कह रहे है । राष्ट्रपति खुद हैरान हो रहे हैं कि ये क्या हो रहा है। राधा ने राष्ट्रपति से सबको कुछ कहने की इजाज़त ली । इजाज़त मिलने पर ………..

“आदरणीय राष्ट्रपति जी, और यहाँ उपस्थित सभी को मेरा प्रणाम । आप सब को बुरा लगा होगा या हैरानी हुई होगी कि मैने इतने बड़े सम्मान को क्यो नही लिया । मैं आपको बताना चाहती हूँ कि हम उस गाँव के है जिसका नाम सही क्या है कोई नहीं जानता सब हमारे गाँव को ” शहीदों का गाँव ” नाम से जानने लगे हैं । बहुत से जवानों ने अपनी जान को न्योछावर किया देश के लिए। जब कोई शहीद होता है तब कुछ महीनों तक जब तक सम्मान नही दे दिया जाता तब तक ही याद रखा जाता है ।
बाद में सब उनको और उनके परिवार को भूल जाते है। उनके बच्चे भूखे पेट रहते हैं । खेती हुई तो ठीक नही तो पेट भरने की भी मुश्किल होती है । सम्मान अपनी जगह पर है मैं चाहती हूँ कि आप शहीदों के परिवार में जो भी काबिल हो उसको उसकी काबलियत के अनुसार सरकारी नौकरी मिल जाये और निजी कम्पनी में भी उनके लिए नौकरी की वयवस्था हो ताकि हमारे बच्चे सही से पढ़ सकें ।खुद के पैरों पर खड़े हो सके । हम भी सर उठा कर जी सके यही चाहती हूं।
हमारे पति देश के लिए जान देते है तो क्या आप करोड़ो नागरिक हमारे लिए थोड़ा सा भी नही कर सकते । औरतों को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करो । हमारे बच्चों को भी बड़े स्कूल में दाखिला मिल जाए उनकी काबिलियत से ।
हमको भी और गर्व हो की हम भारत में रहते हैं । यहां के नागरिक हैं । यही कहना है मुझे ये होता है तो सही मायनों में यही होगा शहीदों का सम्मान । 15 अगस्त सही मायने में हम सब खुशी खुशी मना पाएंगे ।”
राष्ट्रपति समेत सभी भाव विभोर हो गये और सराहना करते हुए राधा को भरोसा दिलाया कि अब कोई शहीद का परिवार बेसहारा नही रहेगा। यही अमित के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।