लघुकथा

चारा

बाजार से  गुजर रहा था, देखा एक व्यक्ति पक्षियों को खिलाने वाला दाना खरीद रहा था  ।  देखकर दिल खुश हो गया । कहाँ तो किसी व्यक्ति को किसी के बारे सोचने की फुर्सत नहीं और कहाँ ऐसे नेकदिल इंसान जो पक्षियों के लिए भी सोचते हैं । सोच चलो इस का पीछा करता हूँ जब यह पक्षियों को चारा खिलायेगा देखकर प्रसन्नता होगी । मैं स्कूटर  पर और वह व्यक्ति भी स्कूटर पर चल पड़ा  । एक बगीचे जैसी जगह पर वह व्यक्ति पहुंचा और अपने थैले से कुछ चीजें निकाली । बड़े ढंग से उसने सारी चीजें जमा दी और खुद कुछ दूर खड़ा हो गया ।  कुछ पक्षी आये डरते डरते इधर उधर देखा, और दाना खाने आगे बढे । अरे यह क्या ? वो तो जाल में फँस गए । मन उदास हो गया । वापस घर आ गया ।

कुछ दिन बाद एक पहाड़ी रास्ते से दुसरे शहर जा रहा था ।  एक मोड़ पर देखा, लोग कारें रोककर बंदरों को फल केले संतरे इत्यादि फेंक रहे थे  । बन्दर बड़े चाव से खा रहे थे । मुझे लगा देखो इंसानियत पूरी तरह से मरी नहीं बंदरों का पेट भी भर रहा है लोग मनोरंजन के साथ साथ पुण्य भी कमा रहे हैं ।

मेरी ख़ुशी अधिक समय तक न टिक सकी । एक और व्यक्ति कार से वहां आया । उसने कार से कुछ केले उठाये और कार की डिग्गी के नीचे टायरों के बीच फेंक दिए । एक छोटा सा बन्दर का बच्चा आया डरते डरते केले  का गुच्छा उठाने को हाथ बढ़ाया । लोग खड़े सेल्फी ले रहे थे । तभी उसका हाथ केले के गुच्छे में लगे कांटें में फँस गया । केले का गुच्छा एक रस्सी से बंधा हुआ था । वह व्यक्ति दौड़ कर आया और बन्दर के बच्चे को पकड़ कर कार में बंद करके ले जाने लगा । सभी बंदरों ने खूब शोर मचाया पर वो कर भी क्या सकते थे । कार स्टार्ट कर वो व्यक्ति चलता बना । मेरा मन भी उदास हो गया । चलते चलते नदी के किनारे पहुंचा । एक व्यक्ति बैठा कांटें में चारा फंसा रहा था । उसने पानी में काँटा फेंका और इंतज़ार करने लगा की कब मछली फंसे । पक्षियों, जानवरों के चारे का रहस्य समझ में आ गया था।

घर आकर अखबार पढ़ने लगा । समाचार में आया था “एक मंत्री जी जानवरों का चारा खाने के मामले में जेल भेजे गए” ।

कुछ दिन बाद एक मैदान के पास से गुजर रहा था । चुनाव आ गए थे । बड़ी भीड़ थी लोग खूब तालियां बजा रहे थे । नेता जी मंच से भाषण दे रहे थे ” चुनाव जीत कर मैं यहां सड़कें बनवा दूंगा,  आपके बच्चों के लिए स्कूल खुलवा दूंगा  यहां की गरीब कन्याओं के विवाह की जिम्मेवारी मेरी होगी किसी को कोई दहेज़ नहीं देना पड़ेगा….. और भी बहुत कुछ । जनता तालियों पर  तालियां बजा रही थी । नए प्रकार का चारा देखकर मुझे हंसी आ गयी ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

One thought on “चारा

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईसाहब ! बहुत सुंदर कहानी के लिए धन्यवाद ! बिना चारे और झूठ के जनता फंसती भी तो नहीं । सबकी अपनी अपनी दुकानदारी है और अपना अपना चारा ।

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