कविता

आहिस्ता

बारिश की बौछारों में जब सुबह सुबह
खिड़की खोली तो
बरामदे में शहतूत से बँधी उस
तार को देखा जिस पर बल्ब लगा
था ,जो जलता-बुझता रहता था
उस तार से एक एक करके बूँदें
लगातार टपक रही थी मगर
थोड़ा-सा रूक कर
महसूस हुआ कुछ इसी तरहा
से मेरी उम्र के बरस
गुजरें हैं आहिस्ता-आहिस्ता
एक के बाद एक जलते-बुझते

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733