गीत/नवगीत

प्रेम की गंगा

जब-जब छाती है हरियाली,
झूमके सावन आता है।
सरसाते हैं सरगम के सुर,
मौसम गीत सुनाता है॥
सावन की इस मधुऋतु में ही,
मिली थी हमको आज़ादी।
पंद्रह अगस्त को लाल किले से,
गूंजी थी जय-घोष से वादी॥
हिंसा की तलवार कटी थी,
सत्य-प्रेम के वारों से।
भारत-भूमि हर्षाई थी,
जय हिन्द के शुभ नारों से॥
बापू ने छेड़ी थी उस दिन,
मधुर सुरों में मीठी तान।
नेहरु ने ली क़सम देश की,
वीरों ने गाए जय-गान॥
लहर-लहर लहराया तिरंगा,
अंबर ने बरसाए फूल।
धरती सुख से मुस्काई थी,
निकल गए थे उसके शूल॥
सूर्य-किरण में चमक अनोखी,
एक बार फिर आई थी।
चंदा की शीतलता में भी,
महक प्रेम की आई थी॥
आज पुनः सावन की झड़ी है,
लहराया है पुनः तिरंगा।
मन में उमड़े गीत खुशी के,
लहराई है प्रेम की गंगा॥

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “प्रेम की गंगा

  • लीला तिवानी

    आजादी की बहत्तरवीं सालगिरह पर प्रेम के गलियारों से गुजरते हुए प्रेम की गंगा बहाएं, उसमें जी भरकर नहाएं, ताकि प्रेम का सागर लहरा सके.

Comments are closed.