लघुकथा

आजादी

कल रात बिना प्याज लहसुन का मटन कोरमा खा कर! मटुक लाल जी गहरी निद्रा में सोए हुए थे,
उनका थोथा पेट बनियान से बाहर झांककर रहम की दुहाई मांग रहा था।
उनके खर्राटे की आवाज गश्त लगाते चौकीदार का सूनापन दूर कर रही थी।
और इधर मटुक लाल जी स्वप्न लोक में कहीं खोकर हूर की परियों के मनमोहक नृत्य का आंनद उठा रहे थे ।

तभी अचानक उन्होंने अपनी ही कनपटी पर एक झन्नाटेदार कंटाप रसीद कर दिया !!

असल मे हुआ ये था कि एक गबरू जवान मच्छर ने उनके गाल पर धर खाया था ।
डंक की पीड़ा और खुजलाहट के मारे मटुकलाल जी को स्वप्न लोक से अद्य लोक में आने में छंण भर भी नही
लगा ।
वो तिलमिलाए हुए उठकर बैठ गए ।

वर्तमान, भूत और भविष्य काल की हर सहायक क्रिया का प्रयोग करते हुए उन्होंने मच्छर की एक टांग पकड़ ली
बोले हरामखोर !
तूने मेरी नींद में ही व्यवधान नही डाला अपितु मेरे हसीन सपनो को भी तार-तार किया है।
“अब तू नही बचेगा बेटा”

“मैं बेटा नही बेटी हूँ मटुक जी” उसके आनन से निकले कंपन्न शब्दों के रूप में ढल रहे थे।
“मैं एक मादा मच्छर हूँ”
मुझ पर दया कीजिये ! मुझे मत मारिये !

यहां तक कि आपके प्रधानमंत्री जी भी कहते है ।
“बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ”
मुझे छोड़ दीजिए हुजूर ।

मटुक जी को तो “मानो काटो तो खून नही” रक्तरंजिश चेहरा और सुर्ख आंखों से उसे घूरते हुए बोले “अरी हट”
बड़ी आयी !
तेरी जिंदगी का मकसद सिर्फ रक्त चूसना है ! मैं तुझ पर दया क्यों करूँ भला ।
क्या तूने “स्वछ भारत अभियान”
के बारे में नही सुना है ।
बहुत हुआ तेरा नाटक अब मरने के लिए तैयार हो जा नामुराद !

“नही मटुक जी आप ऐसा नही कर सकते ” अपनी जान बचाने का यह उसका अंतिम प्रयास था !
आज स्वतंत्रता दिवस है। मुझे मत मारिये । आजाद कर दीजिए मुझे ! !
“ऐसा कहते हुए मच्छर को अपने संवादों के बीच यमराज का प्रतिबिंब भी दिखाई देना शुरू हो गया था।

अरे यह क्या !
उसकी यह बात मटुक जी के दिल तक दस्तक दे गई !
दिल के भोले और आदतों से आवारा मटुक जी के भीतर देशभक्ति की तरंगें हिलोरे मारने लगीं ।
आज उनके लिए कुछ कर गुजरने का अवसर था ।

ठीक है मैं तुझे आजाद करता हूं
“आज के बाद यहाँ नजर मत आना” की समझाइश देते हुए मटुक जी ने उसे छोड़ दिया ।

ऐसा करके मटुक जी गदगद हो उठे थे , आज वो खुद को भगतसिंह और सुखदेव से कमतर नही समझ रहे थे ।उनका मनोबल शिखर पर था ।

सुबह के 6 बज चुके हैं। आज 15 अगस्त है ।
मटुक जी फिर से उसी हसीन दुनियाँ में खो जाने के लिए बार बार करवट बदल रहे हैं ।
” पास के ही स्कूल में बजता हुआ देश भक्ति गीत उनकी नींद में खलल डाल रहा है” ! ! !

इस पूरी घटना का एक मात्र चश्मदीद ! “वक्त”
आजादी के बदलते मायने को देखकर मुस्कुरा रहा है ।।
“जय हिंद”

नीरज सचान 

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email -neerajsachan@bhel.in