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आज के लुकमान

आपने पुराने जमाने के हकीम लुकमान के बारे में तो बहुत कुछ सुना ही होगा. आप सोच रहे होंगे, कि आज अचानक हमें हकीम लुकमान की याद क्यों हो आई? दरअसल आज हमने एक और जान बचाने वाले लुकमान के बारे में सुना, तो हकीम लुकमान की याद आना स्वाभाविक था. वैद्य लुकमान के बारे में तो हम आपको कुछ बताएंगे ही, पहले आज के लुकमान के बारे में.

हमारे आज के लुकमान एक सिपाही हैं. लुकमान एक ऐसे सिपाही हैं, जो इंसानियत की जीती-जागती मूरत हैं. हुआ यह कि मंगल नामक एक 60 साल के बुजुर्ग गुडगांव नहर के पास से गुजर रहे थे. अचानक वे फिसलकर नहर के गंदे पानी में गिर पड़े. तमाशबीनों की भीड़ जुटने लगी और वीडियो बनने शुरु हो गए, पर मदद के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ सका. इतने में सिपाही लुकमान वहां से गुजरे. माजरा समझते ही उन्होंने तुरंत अपनी वर्दी उतारी और नहर के गंदे पानी में कूद पड़े. थोड़ी मशक्कत के बाद वे उसको नहर से बाहर ला सकने में समर्थ हो सके. उन्होंने उसे लिटाकर उसके पेट का पानी बाहर निकाला और उसे अस्पताल ले गए. नहर के गंदे पानी से उनको उल्टियां आने लगी थीं, लेकिन जान बच गई. इस तरह सिपाही लुकमान ने एक बुजुर्ग की जान बचाई. इसलिए हमने उसे आज के हकीम लुकमान की संज्ञा से विभूषित किया है.

पुराने जमाने के वैद्य लुकमान?
अंग्रेजों के साथ ही इस देश में ‘एलोपैथी’ का भी आगमन हुआ. इस से पूर्व वैद्य- हकीम या फिर ओझे-तांत्रिक जादू-टोने से हम हिंदुस्तानियों की सेहत को दुरुस्त-तंदुरुस्त करते थे. वैद्य-हकीम एलोपैथिक डाक्टरों की तरह हर रोगी के टेस्ट करवा कर रोग की जांच नहीं करते थे. वे तो नाड़ी परीक्षण से ही बीमारी का पता लगा लेते थे और उस वक्त के ‘लुकमान हकीम’ तो महज़ मरीज़ की सूरत देख कर ही ‘दर्द-ऐ-दिल’ जान लेते थे.

जब एक अंग्रेज़ डाक्टर को मालूम हुआ कि लुकमान हकीम केवल शक्ल देख कर ही बीमारी का पता लगा लेते हैं, तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. अंग्रेज़ डाक्टर ने एक व्यक्ति को एक पर्चे पर अंग्रेज़ी में कुछ लिख कर लुकमान हकीम के पास भेजा और साथ ही हिदायत की कि रास्ते में वह जहां भी विश्राम करे तो किसी ‘इमली’ के पेड़ के नीचे ही सोए. दो-ढाई महीने के बाद जब वह व्यक्ति लुकमान हकीम के पास पहुंचा तो उसके सारे शरीर पर ‘चरम रोग के चकत्ते’ पड़े हुए थे. हकीम साहब को उसने अंग्रेज़ डाक्टर का परचा दिया और सारा संदेश सुनाया . लुकमान हकीम ने परचा लिया और उसके पीछे फ़ारसी में ‘इलाज लिख दिया’ और कहा कि अब वह रास्ते में जहां भी आराम फरमाए तो ‘नीम के पेड़ के नीचे ही सोएं. वापिस पहुंच कर जब उस व्यक्ति ने अंग्रेज़ डाक्टर को हकीम साहब का संदेश दिया और सारा विवरण बयां किया और बताया कि कैसे उसका चरम रोग नीम के पेड़ों के नीचे सोने से ठीक हो गया तो अंग्रेज़ डाक्टर की हैरानी की सीमा न थी. डॉक्टर लुकमान हकीम की समझ के कायल हो गए.

 

देखा न आपने! पुराने जमाने के वैद्य लुकमान हों या आज के जमाने के लुकमान, दोनों ने जीवनदान देने का काम किया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244