गीतिका/ग़ज़ल

दिलों की दूरियां!!

कहीं सूखा, कहीं पर बाढ़, बहुत बेकार लगता है।
घुटे प्रतिछन जब जिनगी, बुरा संसार लगता है।।

भरी नफरत दिलों मे है,कलंक हर बार लगता है।
रंगों का त्योहार भी अब तो,बुरा त्योहार लगता है।।

बहुत परखा,बहुत जाचा ,मगर धोखे दिये अपने।
मेरी तकदीर मे शायद,सदा नुकसान लगता है ।।

दिलों से दूरिया मिटे, भला अब कौन चाहेगा ।
हर शख्स को अब तो,नफा-नुकसान दिखता है।।

अजान ,घंटिया,गुरवानी सब,बनी सियासत है।
जो आम है उसको अब,सब बे काम लगता है।।

यहाँ हर भाव मे है ,अब अभाव मोहब्बत का ।
जिसे पाने ,पचाने मे,बड़ा बलिदान लगता है।।

— हृदय जौनपुरी

हृदय नारायण सिंह

मैं जौनपुर जिले से गाँव सरसौड़ा का रहवासी हूँ,मेरी शिक्षा बी ,ए, तिलकधारी का का लेख जौनपुर से हुई है,विगत् 32 बरसों से मैं मध्यप्रदेश के धार जिले में एक कंपनी में कार्यरत हूँ,वर्तमान में मैं कंपनी में डायरेक्टर के तौर पर कार्यरत हूँ,हमारी कंपनी मध्य प्रदेश की नं-1 कम्पनी है,जो कि मोयरा सीरिया के नाम से प्रसिद्ध है। कविता लेखन मेरा बस शौक है,जो कि मुझे बचपन से ही है, जब मैं क्लास 3-4 मे था तभी से