कविता

आभा चली गई… (स्मरण अटल जी का)

बहुत दिनों से जूझ रही थी 
 वो जालिम
आखिर सफल हो ही गई
अपने मकसद में
और ले गयी वो निष्ठुर
सबके चहेते को
जो उसका भी
चहेता बनने लगा था
पिछले कुछ सालों से
पर, वह शनै-शनै
लेती रही आग़ोश में
आज हम सबको
बेहोश कर गई
और तन से छुड़ाकर
ज़िंदगी को ले गई
कर गई राजनीति को कंगाल
मंचों से छीन ली
जिसने
कविता की ताल
वो संसद की शे’रों शायरी
और वक्तृत्व का कमाल
उनके  जाने से
मानो प्रभा चली गई
इस कठिन समय में
राजनैतिक आभा चली गई…
       ———– व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201