कविता

आज़ादी का त्योंहार

आज़ादी का जश्न,
आज़ादी, कितना प्यारा शब्द है
कौन नही चाहता अपनी आज़ादी
बच्चे, बुड्ढे, औरत या आदमी
आज़ादी की हवायें, सभी को है प्यारी
पर इतनी आसानी से मिलती कहाँ है आज़ादी?
लड़ना पड़ता है कभी दूसरों से और कभी तो खुद से
और फिर यूँ भी है कि जो मिल जाये आसानी से,
उसकी क़ीमत कहाँ समझती है दर्द के बिना खुशियां
और, किल्लत के बिना रईसी कहाँ समझती है
आज़ादी की कीमत भी वो ही जान पाता है
जिसने कभी गुलामी देखी हो
फिर वो चाहे देश की हो या ख़ुद की वैचारिक
सही मायने में आज़ादी तभी होगी
जब कि हम मानसिक रूप से भी आज़ाद रहे
और ये भली तभी होगी जब नीति, नियमों,
अनुशासन के दायरों में रहे …सुमन “रूहानी”

सुमन राकेश शाह 'रूहानी'

मेरा जन्मस्थान जिला पाली राजस्थान है। मेरी उम्र 45 वर्ष है। शादी के पश्चात पिछले 25 वर्षों से मैं सूरत गुजरात मे रह रही हुँ । मैंने अजमेर यूनिवर्सिटी से 1993 में m. com किया था ..2012 से यानि पिछले 6 वर्षों कविताओं और रंगों द्वारा अपने मन के विचारों को दूसरों तक पहुचने का प्रयास कर रही हुँ। पता- A29, घनश्याम बंगला, इन्द्रलोक काम्प्लेक्स, पिपलोद, सूरत 395007 मो- 9227935630