धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

क्या लोग थे वो दीवाने!

आर्यसमाज के मौन प्रचारक वो नींव के पत्थर है जिन्होंने अपना पूरा जीवन ऋषि दयानन्द के मिशन के लिए खपा दिया। कभी नाम-दाम और श्रेय प्राप्ति को अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया। उनके तप और त्याग को एक लेख में वर्णन करना असंभव हैं। मगर उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम अपने को उनका अनुगामी बनाये। यही इस लेख का उद्देश्य हैं। इससे न केवल हमारी सोच सकारात्मक बनती हैं। मैं कुछ नाम लिख रहा हूँ।

१. पंडित सुधाकर चतुर्वेदी , बंगलोर – कन्नड़ भाषा में वेदों का भाष्य करने के अतिरिक्त अनेक वैदिक पुस्तकों के लेखक हैं।
२. डॉ तुलसी राम, कनाडा में रहते हुए 10 वर्षों में वेदों का आंगल भाषा में सुन्दर भाष्य किया।
३. स्वामी श्रद्धानन्द,महाराष्ट्र, सैकड़ों निर्धन युवाओं का जीवन निर्माण करने वाले सन्यासी।
४. ब्रह्मचारी नंदकिशोर- आपने नेपाली भाषा में ऋषि ग्रन्थ एवं वेदों को नेपाली भाषा में छापने में प्रयासरत हैं।
५. स्वर्गीय पंडित उमाकांत उपाध्याय जी कोलकाता, प्रबुद्ध एवं वाणी व लेखनी दोनों से सरस्वती के मानस पुत्र हैं। बंगाल में आर्यसमाज के स्तम्भ।
६. डॉ भवानीलाल भारतीय जी ऋषि दयानंद जी के जीवन के आधिकारिक विद्वान एवं प्रबुद्ध चिंतक।
७. डॉ प्रियव्रत जी उड़ीसा, उड़िया भाषा में साहित्य का सृजन कर ऋषि मिशन के अटूट कार्यकर्ता।
८. स्वर्गीय आचार्य नरेंदर भूषण जी जिन्होंने मलयालम भाषा में अनेक वैदिक पुस्तकों का लेखन किया जिसमें चारों वेदों की मलयालम वेद संहिता उनकी सबसे प्रमुख कृति हैं।
९. तेलगू भाषा में वैदिक साहित्य का सृजन करने वाले गुरु शिष्य परम्परा के तीन महान लेखक- स्वर्गीय आचार्य गोपदेव जी, स्वर्गीय स्वामी वेदानन्द जी सरस्वती एवं वर्तमान में डॉ मरि कृष्णा रेड्डी। आप सभी प्रबुद्ध विद्वानों ने तेलगू भाषा में अनेक वैदिक पुस्तकों का प्रकाशन किया है। जिसमें चारों वेदों का तेलगु अनुवाद भी शामिल हैं।
१०. आर्यसमाज के भजनोपदेशक स्वर्गीय पंडित चन्द्रभानु जी आर्य। आपने हरयाणवी भाषा में 10000 भजनों का लेखन किया था। सभी आपकी मूल कृति थे। 60 वर्ष से अधिक आर्यसमाज का हरियाणा, राजस्थान , हिमाचल, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रचार किया। सीधे-साधे सरल स्वभाव के पंडित जी जीवन भर आर्थिक कठिनाई झेलते रहे मगर स्वामी दयानन्द के सिद्धांतों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया।

जो लोग यह दम्भ भरते है कि उन जैसा कोई नहीं। उन्हें इन मूक प्रचारकों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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डॉ विवेक आर्य