कविता

खोज रही थी

एक रोज खोज रही थी
खुद को
पाया कभी तुम्हारे कान्धें की नीचे
तुम्हारे सर को दिये सराहा
तो कभी पाया खुद को
खुंटी की जगह
जहाँ उतार दिया करते हो
तुम उलझनें अपनी शर्ट के साथ
तो कभी चद्दर की सिलवटों में
तुम्हारे साथ रहने का सुख लिये
कभी आंगन के पायदान में
पोंछतें हुये तुम्हारे पांवों की धूल को
कभी रोटी की सौंधी खुशबू में
जिसे खाकर आत्मा
तृप्त हो जाती है तुम्हारी
कभी तकियें में छिपी हुई
तुम्हारे सर को सम्हाले हुये
सुनो ना
मुझे पता है कि
तुम जानते हो
मैं हर क्षण
तुम्हारे लिये ही जीती रहीं हूँ
तभी तुम हर अहसास को
शिद्दत से निभाते हो
खुद को मेरे हवाले कर
चैन की नींद सो जाते हो
उन चद्दरों की सलवटें
गवाह है इसकी ।

अल्पना हर्ष

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान