सामाजिक

शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता

भारत परंपराओं का देश है और इन परंपराओं के बीच गुरु-शिष्य की परंपरा हमारे देश की एक बहुत पुरानी तथा सर्वमान्य परंपरा है. प्राचीन काल से ही भारत गुरु-शिष्य की इस परंपरा को लेकर पूरे विश्व समुदाय के आकर्षण का केंद्र रहा है. हमारे यहाँ एक से बढ़कर एक गुरुओं ने जन्म लिया है और उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर अपने शिष्यों को भी कालजयी बनाया है. फिर चाहे वे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य हो या मर्यादा पूरषोतम भगवान श्रीरामचन्द्र जी के गुरु कौशिक मुनि अथवा सामान्य बालक चन्द्रगुप्त को महान शासक बनाने वाले चाणक्य. इनके अतिरिक्त भी देश में ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं जब गुरुओं ने अपने शिष्यों की प्रतिभा को पहचानकर उन्हें अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ बना दिया है. और यही कारण है कि हमारे समाज में शिक्षकों को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है. इसी क्रम में समूचे विश्व में शिक्षकों (गुरुओं) को विशेष सम्मान देने के लिये शिक्षक दिवस का आयोजन किया जाता है. विश्व के अधिकतर राष्ट्रों में अलग अलग समय पर शिक्षक दिवस का पालन किया जाता है और शिक्षक दिवस के इस अवसर पर कुछ देशों में छुट्टी रहती है जबकि कुछ देशों में इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

हमारे देश में भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन (५ सितंबर) को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है. डा० राधाकृष्णनजी ने भारतीय शिक्षा क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया है. वे एक सफल राष्ट्रपति होने के साथसाथ एक महान शिक्षक भी थे. यही वजह है कि वे सदैव ही अपने छात्रों के प्रिय बनें रहें और फिर जब 1962 में वह भारत के राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ विद्यार्थियों ने उनसे 5 सितंबर को उनका जन्मदिन मनाने का निवेदन किया. अपने चाहने वालों के आग्रह का सम्मान करते हुए उन्होंने अपने छात्रों को उनके जन्मदिवस अर्थात 5 सितंबर को अध्यापन के प्रति उनके समर्पण के लिये शिक्षक दिवस के रुप में मनाने का सुझाव दिया. उनके छात्रों ने उनके सुझाव का मान रखा और 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया. तभी से भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाने लगा. यह शिक्षकों को समर्पित एक विशेष दिन है. इस दिन पूरे देश के विद्यार्थी अपने शिक्षकों का विशेष सम्मान करते हैं और अपनी कृतज्ञता जाहिर करते हैं. वैसे भी हमारे समाज में शिक्षकों को समाज की आधारशिला माना गया है, उन्हें देश और समाज की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है. क्योंकि वे शिक्षक ही हैं जो विद्यार्थियों के चरित्र का निर्माण करते हैं और उन्हें एक आदर्श नागरिक के रूप में गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे हमें शैक्षणिक दृष्टी से तो बेहतर बनाते ही हैं साथ ही हमारे ज्ञान, विश्वास स्तर को बढ़ाकर नैतिक रुप से भी हमें अच्छा बनाते हैं. जीवन में अच्छा करने के लिये वह हमें हर असंभव कार्य को संभव करने की प्रेरणा देते हैं. अधिकतर अध्यापक अपने छात्रों को अपने स्वंय के बच्चे की तरह बड़ी सावधानी और गंभीरता से शिक्षित करते हैं. और संभवतः इसी कारण कहा गया है कि, शिक्षक अभिभावकों से भी महान होते हैं. क्योंकि जहां अभिभावक एक बच्चे को जन्म देते हैं तो वहीं शिक्षक उसके चरित्र को आकर देकर उसका भविष्य उज्ज्वल बनाते हैं. देश में रहने वाले नागरिकों के भविष्य निर्माण के द्वारा शिक्षक राष्ट्र-निर्माण करते है. शिक्षक हमें सिर्फ पढ़ाते ही नहीं है बल्कि वो हमारे व्यक्तित्व, विश्वास और कौशल स्तर को भी सुधारते हैं. वे हमें इस काबिल बनाते हैं कि हम जीवन युद्ध में किसी भी कठिनाई और परेशानी का सामना कर सकें.

शिक्षक ज्ञान, जानकारी और समृद्धि के वास्तविक धारक होते हैं जिसका इस्तेमाल कर वह हमें एक योग्य एवं सक्षम व्यक्ति के रूप में गढ़ते हैं. हमारी हरेक सफलता के पीछे हमारे शिक्षकों का अभूतपूर्व योगदान होता है चूंकि वे अपनी सारी व्यक्तिगत समस्यायों को दरकिनार कर अपनी जिम्मेदारी का अच्छे से निर्वाहन करते हुए हमारा जीवन महकाते हैं. ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उनका सम्मान करें. फिर चाहे हम कहीं भी किसी भी पद पर क्यों न हो हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि हम शिक्षकों का सम्मान करें न कि अपने पद के नशे में चूर होकर उनके सम्मान को ठेस पहुंचाएं. यह बड़े दुख की बात है कि वर्तमान समय में हमारे देश में कई बार उच्च पदस्थ व्यक्तियों द्वारा शिक्षकों को अपमानित करते हुए देखा गया है.अभी हाल ही में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के जनता दरबार में न्याय की फरियाद लेकर आई एक बुजुर्ग महिला टीचर को स्वयं मुख्यमंत्री ने ही आवेश में आकर भरी सभा में अपमानित कर सस्पेंड कर दिया. इतना ही नहीं बल्कि चंद महिनों पहले गायक से नेता बनें भाजपा के दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी एक महिला शिक्षिका को बस गाना गाने की गुजारिश करने पर भला बुरा कह अपमानित कर दिया. देशभर में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब बड़े पदों पर बैठे व्यक्तियों ने शिक्षकों का अपमान किया है जो हमारी परंपरा के विरुद्ध है. शिक्षकों के साथ हुई इन बदसलूकियों को देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि देश और समाज की आधारशिला रखनेवाले शिक्षकों के बेसकीमती कार्य के लिये उन्हें आज कोई धन्यवाद नहीं देता और नाही उनके योगदान के महत्व को स्वीकार करता है ऐसे में विद्यार्थियों द्वारा शिक्षक दिवस के शुभ अवसर पर शिक्षकों का सम्मान किया जाना तथा उन्हें धन्यवाद देना हर प्रकार से सराहनीय है. क्योंकि वे शिक्षक ही हैं जो हमें शिक्षा और ज्ञान के जरिए बेहतर व्यक्ति बनने के लिए तैयार करतें हैं. शिक्षकों की ऐसी ही कोशिशों और योगदानों को महसूस करने का मौका छात्रों को शिक्षक दिवस ही देता है. यही वह दिन है जब छात्र शिक्षकों की कोशिशों को व्यर्थ नहीं जाने देने का संकल्प लेते हैं. और एक शिक्षक के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार यह होता है कि उसके छात्र अपने गुरुद्वारा सीखाए मूल्यों को अपनाकर एक आदर्श नागरिक बनकर उभरें और जिंदगी के अगले पड़ाव में चुनें हुए क्षेत्र में ऊंचाई हासिल करें.

शिक्षक दिवस एक ऐसा दिन है जब शिक्षकों को भी लगता है कि उन्हें प्यार मिलना चाहिए. उन्हें छात्रों से सम्मान और प्रोत्साहन मिलना चाहिए. इस वजह से छात्र यदि एक दिन अतिरिक्त मेहनत करते हुए शिक्षक को खास महसूस कराते हैं तो उसका स्वागत होना चाहिए. शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर हम सभी को अपने आपसे यह वादा करना चाहिए कि हमारे शिक्षकों ने हमें जो भी सकारात्मक मूल्य सिखाए हैं, हम उनका सदैव पालन करेंगे और एक अच्छे नागरिक के रूप में अपने देश और समाज का मान रखेंगे.

कभी अब्दुल कलाम साहब ने कहा था कि “शिक्षकों को छात्रों में पूछने, सृजनात्मकता, उद्यमिता और नैतिक नेतृत्व की क्षमता विकसित करनी चाहिए और उनका रोल मॉडल खुद बनना चाहिए।” शिक्षक दिवस के इस शुभ दिन में शिक्षकों को भी अब्दुल कलाम साहब कि इस बात का अक्षरशः पालन करने का प्रयत्न करना चाहिए. तब जाकर कहीं यह देश सही अर्थों में विश्वगुरु के आसन पर विराजमान हो पाएगा.

मुकेश सिंह

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl