गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आँख मुद्दत से मियाँ आप मिलाते भी नहीं ।
फासले ऐसे मुकर्रर हैं कि जाते भी नहीं ।।

मुल्क से बढ़ के सियासत की है कुर्सी यारो ।
बेच आये हैं वो ईमान बताते भी नहीं ।।

रोज बारूद वो नफरत की छिड़क जाते हैं ।
आग लगती है तो लग जाए बुझातेभी नहीं ।।

डर गए आपकी मनमानियों से हम हाक़िम ।
जुल्म पर उँगलियाँ अब लोग उठाते भी नहीं ।।

आपको खूब मुबारक़ हों फ़रेबी जुमले ।
आप वादों को तबीयत से निभाते भी नहीं ।।

वोट हमसे भी लिया और हमी पर हमला ।
ज़ख़्म संसद में हमारा वो दिखाते भी नहीं ।।

सांप मर जायेगा लाठी भी सलामत होगी ।
राज़ अख़बार यहाँ खुल के बताते भी नहीं।।

कत्ल कर देते हैं प्रतिभा को सरे आम यहाँ ।
और अपराध पे वो खेद जताते भी नहीं।।

नौजवां भूँख से मरता है यहां पढ़ लिख कर ।
रोजियां आप यहाँ ढूढ़ के लाते भी नहीं ।।

गिर न जाएँ कहीं अब आप भी नजरों से हुजूऱ।
हम कसौटी पे खरा आपको पाते भी नहीं ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com