क्षणिका

क्षणिकाएं : राखी के रंग, हकीकत के संग

(1)
भाई के
घर से लौटी
बहन उदास
दिख रही थी
राखी बांधने में
कितना
घाटा हुआ
हिसाब
लिख रही थी ।
(2)
सम्पन्न भाई ने
ग़रीब बहन से
दूरी बनाई है
कहीं बहन
मदद न मांग ले
यही बात
हरदम
उसके मन में
आई है !
(3)
बचपन में साथ
खेले /पढ़े/बढ़े
भाई-बहन
आज परस्पर
दूर हैं
वक्त के हाथों
कितने ज़्यादा
मजबूर हैं !
(4)
भाई- बहन
के बीच
स्वार्थ की
दीवार खड़ी है
अदालतों
की ओर
मुड़ी है !
(5)
बहन से
राखी बंधवाने
को फुरसत
नहीं
पर नेता भाई
नारी निकेतन
जा रहा है
उसे पावन सूत्र
में भी
वोट नज़र
आ रहा है !
(6)
प्रेमी- प्रेमिका
बहन- भाई
बनकर मिल
रहे हैं
नैतिकता के
सारे मापदंड
हिल रहे हैं !
         — प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com