कविता

वो शाम

वो शाम भी कितने सुहाने थे
जब हमदोनो साथ
एक दूसरे का हाथ पकड़ खड़े थे
कितने वादे कितने कसमे देने के बाद
उस शाम हम एक हुये थे
उस दिन कभी कभी सोचती
लौट जाऊँ बिन मिले ही
क्योकि ऐसे वादे तुमने कितने बार किये.थे
ऐसी कसमे कितनी बार खायी थी
नही रहा एतबार अब तुम्हारे
कसमे वादो पर
फिर भी मिलने आयी
मन मे हजारो सवाल लिये हुये
जिसका जवाब सिर्फ तुम्हारे पास थे
लेकिन जैसे ही पिछे से
तेरे हाथो का स्पर्श पायी
लिपट सी गयी तुमसे
भूल गयी सभी सवाल जवाब
बस डूब गयी तुम्हारे आँखो में
खो गयी बिते हुये पुराने ख्यालो में
और क्या बस मिल गये
मेरे सवालो के जवाब
तुम्हारे इन आँखो में।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४