सामाजिक

किसी दूसरे गृह के प्राणी नहीं हैं किन्नर

जब भी हम किसी किन्नर को देखते हैं तो अचानक से हमें ऐसा क्यों लगता है कि ये किसी दूसरे गृह से आये हुए हैं | ये हमारे समाज का हिस्सा नहीं हैं | लोग किन्नरों को अलग नजरों से क्यों देखते हैं? यह सोचने, मनन करने योग्य विषय है | शुरू से ही हमें ऐसा माहौल देखने को मिलता है जिसमें स्त्री-पुरुष ही दिखते हैं | क्योंकि किन्नरों को हम अपने समाज से अलग रखते हैं | हम इन्हें हँसी का पात्र समझ इनकी खिल्ली उढाते हैं | तमाम तरह के अंधविश्वासों को लेकर हमेशा किन्नर समुदाय से दूरी बनाकर चलते हैं | किन्नर कोई दूसरे गृह के प्राणी नहीं हैं | हम इंसानों के ही वंश हैं, महज एक प्राकृतिक दोष के कारण हम उन्हें अपने मानव समाज से अलग नहीं कर सकते | वो कोई गैर नहीं हम इंसानों का ही खून हैं | हमें उनको अपनों से कदापि दूर नहीं करना चाहिए | अब खोखली मान्यताओं झूठी इज्जत की परवाह किये बगैर माँ-बाप को अपनी ऐसी संतानों को अपने पास ही ऱखना चाहिए जो एक प्राकृतिक भूल का शिकार हुए हैं |
वैसे आज सरकारों ने भी नियमों में बदलाव किया है | किन्नरों को भी उनके अधिकार उन्हें मिल रहे हैं वो भी हमारी तरह ही सामान्य जीवन यापन कर रहे हैं या कर सकते हैं | मैंने अक्सर देखा है किन्नर हमारे शादी – ब्याह, बच्चों के जन्मोत्सव व अन्य तीज-त्यौहारों पर गीत गा-गाकर, तालियां बजा-बजाकर हमें बधाईयां देते हैं और बदले में भेंट प्राप्त करते हैं | परन्तु अगर रूपयों-पैसों व अन्य जरूरी सामान में थोडी कमी हो तो ये लोग अश्लीलता की सारी हदें पार कर देते हैं | यह गलत बात है | उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि समाज में कुछ लोग किसी तरह से बस अपना घर चला रहे हैं, उन पर जोर जबरदस्ती सही नहीं होती | वे लोग पैसा आदि तो देते हैं पर दुःखी हृदय से मजबूरन होकर देते हैं | बसों-ट्रेनों में जोर-जबरदस्ती से यात्रीओं से पैसे मांगना बहुत गलत बात है | माना कि किन्नरों का काम मांगना है पर इतनी जबरदस्ती से भी नहीं मांगना चाहिए कि वह लूट की श्रेणी में आये | मैं यहाँ दो घटनाओं का जिक्र करूँगा –
पहली घटना है – मैं कुछ वर्ष पहले कानपुर गया था, वायुसेना के एक रिक्त पद के लिए परीक्षा देने | तब मैंने ट्रेन में देखा कि एक बहुत ही सुंदर किन्नर अपने साथी किन्नर के साथ ट्रेन में पैसे मांग रही थी | उसकी सुंदरता को देख-देख लोग पागल हुए जा रहे थे | वैसे वो किन्नर लग ही नहीं रही थी | यात्रीगण दिल खोलकर उसे रूपये दे रहे थे | पैसे मांगती-मांगती किन्नर मेरे पास आ गयी | उसने पीछे से मुझे हलका सा धक्का मारा और बोली ‘चल हीरो निकाल’… मैंने कहा – देखिए!  मेरे पास सिर्फ इतने पैसे हैं कि मैं बस किसी तरह अपने घर वापिस पहुंच सकता हूँ | और मैं आपको पैसे दूंगा तो हो सकता है रात खाली पेट गुजारनी पडे | मेरे पास चार-पांच सौ रूपये हैं केवल और मुझे कल सुबह चकेरी पहुंचना है, मेरा एग्जाम है | और वो इतना सुनते ही मेरे गाल पर हल्की सी चपत लगाकर मुस्कराती हुई चली गई |
यह तो थी पहली घटना जो मेरे लिए अच्छी साबित हुई, अब दूसरी घटना पढ़िये –
कुछ माह पहले मुंबई जाने का कार्यक्रम बना | ट्रेन में किन्नरों के झुण्ड के झुण्ड पैसों के लिए जोर जबरदस्ती की सीमा का उलंघन कर रहे थे | मजबूरन मुझे भी पचास रूपये देने पडे | एक लडके ने रूपयों के लिए आनाकानी की तो उसे अत्यधिक अपमानित किया | बेचारा शर्म के मारे अगले स्टेशन पर उतर गया | मुझे किन्नरों का यह बर्ताव बहुत बुरा लगा | लोगों के साथ धक्का-मुक्की, जोर जबरदस्ती सही नहीं |
कई बार खबरें आती हैं कि किन्नरों को लोगों ने दौडा-दौडाकर पीटा | बेहतर हो जो मिले प्यार से लो, क्योंकि समाज में सब तरह के लोग हैं | कोई कितना दे सकता है तो कोई कितना, सबसे मनमाफिक भेंट मिलना सम्भव नहीं है | और हमारा कर्त्तव्य भी बनता है कि किन्नर समुदाय की हर सम्भव मदद करें, क्योंकि किन्नर कोई दूसरे गृह का प्राणी नहीं है, वे भी हमारी-तुम्हारी तरह ही इंसान हैं और हमारे समाज से ही पैदा होते हैं | आसमान से नहीं टपकते | हमें उनके साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए | किन्नर समुदाय का भी फर्ज बनता है कि पुरानी और खोखली मान्यताओं को तोडकर आधुनिक युग में आधुनिक तरीके से जिया जा सकता है | समाज में अपनी सेवाएं दी जा सकती हैं | जहाँ तक सम्भव हो माँ-बाप को अपनी ऐसी संतानों को अच्छे से पढाएं – लिखायें और उसे अपने पैरों पर खड़ा करें, जो दुर्भाग्य से किन्नर रूप में जन्मी हैं | ताकि उन्हें असामाजिक तत्वों से गाली खा कर, नाच गाकर न जीना पडे | अगर वे अपने पैरों पर खडें होंगे तो कोई मुंह पर उसका उपहास नहीं उढा सकता | पीठ पीछे तो राजाओं तक से गाली पडती है |
जब कोई सन्यासी ग्रहस्थी धर्म से दूर रह कर वृह्मचर्य पूर्ण जीवन जीता है और समाज में पूज्य हो जाता है तो फिर किन्नर क्यों नहीं सम्मान पा सकते | क्या बच्चा पैदा करना ही मनुष्य का धर्म होता है | दुनिया में और भी ढेर सारे काम हैं, जिनको करके जन्म सफल किया जा सकता है | तो आइये ये सारा का सारा भेदभाव मिलकर मिटायें |
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111