लघुकथा

रास्ते अपने-अपने

“क्या भाभी आप भी न! अपने लिए काँटों वाली डगर चुन लीं… छोटे देवर की व्यंग्य भरी आवाज सुन, विभिन्न तरह के फूलों से सजी दुकान के उद्घाटन पर आये अतिथियों से घिरी मेघा मुस्कुराई…
“उस दिन के उस दिन, फूलों का वितरण नहीं हुआ तो मुरझाये फूलों का क्या करेंगी आप…?”
“फूल मुरझाएंगे, किसी अपने के जीवन तो नहीं…! मुरझाये फूलों की भी अपनी उपयोगिता है!”
“हवाई जहाज से यात्रा सपना हो जाएगा, हमारे लिए भाभी…!”
“किसी आँगन में किसी के सपने की मौत नहीं होगी न देवर जी…”
कुछ दिनों पहले मेघा के सामने शराब-दुकान की चाभी पड़ी हुई थी ,पति के मौत के बाद अब उसे उस दुकान को चलाना था… अपनी, अपने छोटे देवर और अपनी बेटी के जीवन यापन के लिए… पिता से धरोहर में मिली शराब की दुकान। मेघा की सास शराब की वजह से ही घर छोड़ गई थीं… बेचना कम पीना ज्यादा , उसके पति और उनके भाइयों को शराब की लत लग गई… अंत समय में सबके शरीर का एक-एक शिरा को फाड़ कर खून बाहर निकला…

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ