धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

उत्सव के रंग त्योहारों के संग

भारत के हर प्रांत में त्योहारों का अपना महत्व है और सब ऐसे मनायें जाते हैं जैसे कोई उत्सव हो रहा हो। सभी अपने – अपने तरीक़े से इन त्योहारों को मनाते हैं। अच्छा है कुछ परंम्पराएँ अभी भी जीवित हैं हमारे बुज़ुर्गों के माध्यम से। जिन्हें हमारी पीढ़ी बख़ूबी निभा रही है परन्तु आगे आने वाली पीढ़ी का कुछ भरोसा नहीं है क्योंकि हम बच्चों के ऊपर कुछ भी ज़बरदस्ती नहीं लाद सकते ! आज़ के युवा खुले और आज़ाद विचारों के हैं , हमें कोई हक़ नहीं है जो हम उनकी आज़ादी पर पाबंदी लगायें ।
हम उत्तर भारत से हैं तो वहीं के त्योहारों का वर्णन करेंगें ! राखी से यह उत्सव शुरू हो जाते हैं और दीवाली तक लगातार चलते हैं । फिर ज़रा ठहर कर होली अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है कहती है अब बहुत दिन हो गये शांत रहते हुए कुछ हुड़दंग हो जाये पर सलीक़े से। बीच – बीच में छोटे – छोटे त्योहार आते – जाते रहते हैं और मन पर गुदगुदी सी मचा देते हैं ।
बच्चों को तो इन सब त्योंहारों का बस एक ही मतलब समझ आता है कि नये कपड़े , अच्छा खाना , घूमना – फिरना और बस आनंद ही आनंद मिलेगा । परन्तु बड़ों के लिये यह एक परंम्परा और कुटुंब के बड़े लोंगों कों समर्पित सम्मान है । राखी और दशहरे पर तो भाईयों से पैसे भी मिलते हैं जिसके लिये बहनें बहुत एक्साइट होती हैं! बहनें हाँथों पर मेंहदी लगवाती हैं और भाईयों की लम्बी उम्र की कामना करती हैं भाई भी रक्षाकवच बनकर खड़े रहने का वादा करते है।
दशहरा और दीवाली कुटुम्ब के साथ मनाई जाये तो यह अपनेआप में एक उत्सव से कम नहीं होता। इस पूरे महीने का पता ही नहीं चलता सारा समय घर की साज – सज़ावट और ख़रीदारी में ही लग जाता है। घर की सज़ावट देखते ही बनती है। दोनों त्योहार बुराई पर अच्छाई को ही दिखाते हैं।
दीवाली पर एक हफ़्ते पहले से ही बाज़ारों को सजाया जाता है और गिफ़्ट का आदान – प्रदान शुरू हो जाता है। एक दिन पहले धन्तेरस पर चाँदी , इस्टील के बर्तन और खील – बताशे लाने का विधान है। उस दिन रंगोली बनाई जाती है और लक्ष्मी – गणेश की पूजा करके घर को दीपों से इस तरह सजाया जाता है जैसे स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो। उड़द की दाल की कचौरी , आलू, कद्दू, गोभी की सब्ज़ी, सलाद, रायता और मिठाई अहा ! त्योहार में और जान डाल देता है ।
दशहरे पर हमारा पूरा ख़ानदान एक जगह एकत्रित होता है जिसमें चाचा, ताऊ, बुआ सभी पूरे परिवार के साथ एक जगह पर एकत्रित होते हैं। हर साल इसी बहाने जगह – जगह घूमने के लिये मिलता है क्योंकि बारी – बारी से सबका नम्बर आता है। उस दिन तो ऐसा लगता है जैसे कोई उत्सव चल रहा हो। मुझे बहुत अच्छा लगता है। इसी बहाने हम हर साल इस त्योहार पर उत्सव का आनंद उठाते हैं।
इस प्रकार हम भारतवासी पूरे साल त्योहारों के माध्यम से उत्सव का आनंद उठाते हैं जो जीवन की सभी परेशानियों को कुछ क्षण के लिये हमसे जुदा कर देता है और यह संदेश देता है कि हम अकेले नहीं हैं सब हमारे साथ हैं । जय हिंद …….

नूतन गर्ग ( दिल्ली )

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक