ख्वाब अपनी पलकों पे…
ख्वाब अपनी पलकों पे, दिन – रात मैं सजाती हूँ !
देख हँसी लब पे तेरे, मैं पहरों मुस्कुराती हूँ !!
जुस्तजू मेरी हो तुम, मंजिल नहीं तुम बन सकते !
फिर भी दिल की महफिल, मैं तेरे नाम से सजाती हूँ !!
दिल ये मानता रहा, बस हम ही तुमको चाहते हैं !
तुझको चाहने वालों में, मैं खुद को तन्हा पाती हूँ !!
तेरी यादों के जुगनू, झिलमिलाएँ मेरी आँखों में !
तुझको मिलने की आरजू में, मैं खुद को भूल जाती हूँ !!
ख्वाब अपनी पलकों पे, दिन – रात मैं सजाती हूँ !
देख हँसी लब पे तेरे, मैं पहरों मुस्कुराती हूँ !!
अंजु गुप्ता