गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – शबनमी मोती

दिल ने जब भी, तेरे आने की ख़बर पाई है।
धड़कनों में भी, कोई बर्क़ सी लहराई है।
है तबस्सुम से सजे लब, मगर न जाने क्यूं ,
पलकों पे शबनमी, मोती की घटा छाई है।
यूं तो ख़ामोश लब रहे हैं, एक ज़माने से,
गर समाअत है तो कह दें,जो दिल में आई है।
है फ़िजा संदली गुलों से सज गई राहें
उरूसे -जिंदगी की आज मुंह दिखाई है
कहीं ढल जाए न ये दिल की अंजुमन देखो
अब तो दीदार हो के रुह जगमगाई है
पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है

One thought on “ग़ज़ल – शबनमी मोती

  • विजय कुमार सिंघल

    ग़ज़ल में कठिन उर्दू-फारसी शब्दों के हिन्दी अर्थ भी देने चाहिए. जहाँ तक संभव हो इनसे बचें तो अच्छा है.

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