गीतिका/ग़ज़ल

एक प्रयास ग़ज़ल का,,,

अपनी कीमत निकाल कर रखना,
सिर्फ  इज़्ज़त संभाल कर रखना।

वो  गिरे  जब  भी  तेरे  हक में हो,
ऐसा  सिक्का  उछाल कर रखना।

फिर  तो  उसको यकीन आएगा,
तू  कलेजा  निकाल  कर रखना।

अब  गुज़ारा  नहीं   है  यारों से,
चंद दुश्मन भी पाल कर रखना।

ज़िंदगी   सुन   ले  मौत  आए  तो,
कुछ दिनों उसको टाल कर रखना।

ज़िंदगी भर के लिए ‘जय’ सबको,
अपने  सांचे  में ढाल कर रखना।

जयकृष्ण चांडक ‘जय’

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से