कविता

शून्यता कैसी व्याप्त कैसे हुई

शून्यता कैसी व्याप्त कैसे हुई,
कितनी क्यों कहाँ कब से आई रही;
कितना ब्रह्माण्ड अण्ड प्रकटा किया,
पिण्ड कितनों को विराटित वो किया !
जानना ज़रूरी है सृष्टि में,
व्यष्टि में द्रष्टि में विनष्टि में;
विलुप्त क्या हुआ है लिप्ति में,
विक्षुब्ध क्या हुआ समष्टि में !
क्षोभ क्यों आया क्षुद्र काया में,
समझ क्या आया मोह माया में;
सूक्ष्मता आई कितनी बोधि में,
बढ़ी है क्षमता कितनी शोधी में !
शुद्धि चक्रों में कितनी है आई,
युद्ध की कितनी घटी गरमाई;
कितनी हरियाली ग्रहों छा पाई,
वायु क्या प्राणवायु दे पाई !
तरंग ध्यान में रही कैसी,
समाधि शंभु संग चली कैसी,
निर्गुणी भाव तृप्ति कैसी रही,
सगुण गुणवत्ता ‘मधु’ कितनी चखी !

गोपाल बघेल ‘मधु’